नजरिया
भ्रष्टाचार, आदत और चलन
समूचा देश भ्रष्टाचार को लेकर आतंकित है,
चाहता है कि भ्रष्टाचार खत्म हो जाए।
मगर, सवाल यह कि
भ्रष्टाचार आखिर खत्म कैसे होगा। क्या एक आदमी को चुन लेने से देश भ्रष्टाचार मुक्त हो
जाएगा। हंसी आती है ऐसी सोच पर …..
16वीं लोकसभा का चुनाव देखिए। इसमें
प्रचार में हजारों करोड़ खपाए जा रहे हैं। निर्वाचन आयोग ने भी 70 लाख तक की छूट दे दी। क्या ये सब मेहनत
की कमाई का पैसा है। क्या यह भ्रष्टाचार को प्रश्रय देने की पहली सीढ़ी नहीं। आखिर
जो चंदे के नाम पर करोड़ों अरबों दे रहा है, क्या कल वह धंधे के आड़े आने वाली
चीजों को मैनेज करने के लिए दबाव नहीं बनाएगा। क्या
आपके वह अलां फलां नेताजी बताएंगे कि उन्हें मिलने वाला धन किन स्रोतों से
आया है।
क्या आप उनसे यह सवाल पूछ सकेंगे, जब वह वोट मांगने आएं। क्या आप जानने
के बाद उनसे सवाल करेंगे कि फलां घोटाले में उनका क्या हाथ था। दूसरा
सवाल कि क्या आप अपने वाजिब हक के बाद भी रिश्वत देना या
लेना छोड़ दोगे। क्या आप अपने हर काम को कानूनी तौर पर करने का मादा रखते
हैं। क्या 30 से
40 प्रतिशत पर
छूटने वाले ठेकों में एक रुपया भी कमीशन कोई नहीं लेगा। ऐसे
ही सवाल कई हैं। जिनके जवाब आप भी जानते हैं। तो फिर
भ्रष्टाचार कैसे खत्म हो सकता है। जब आप कुछ भी त्याग नहीं करना चाहते।
महज एक वोट भ्रष्टाचार को खत्म नहीं कर सकता है, तय मानिए।
इसके बाद भी मुझे लगता है कि आंखें आभा
और चकाचौंध में बंद ही रहेंगी। फिर भला भोले आदमियों क्यों मान बैठे कि
देश भ्रष्टाचार से मुक्त हो जाएगा। क्यों इन झूठी दलीलों को सच मान
जाते हो, क्यों
अपने वोट को जाया करते हो। तय मानिए कि यह जरुरी नहीं कि विचार पैसे
वाले के पास ही होता है, एक गरीब भी विचार संपन्न होकर भविष्य को निर्धारित करने की क्षमता रखता है।
भले
ही उसके पास चुनाव में आपको आकर्षित करने के लिए प्रचार करने के
पर्याप्त संसाधन नहीं। बवंडर आपको उड़ा तो ले जा सकते हैं, स्थायित्व नहीं दे सकते। सो
जागो… जागो मतदाता जागो, वोट करो, जमकर चोट करो.. आग्रहों और पुर्वाग्रहों से बाहर निकल कर …….
चाहता है कि भ्रष्टाचार खत्म हो जाए।
मगर, सवाल यह कि
भ्रष्टाचार आखिर खत्म कैसे होगा। क्या एक आदमी को चुन लेने से देश भ्रष्टाचार मुक्त हो
जाएगा। हंसी आती है ऐसी सोच पर …..
16वीं लोकसभा का चुनाव देखिए। इसमें
प्रचार में हजारों करोड़ खपाए जा रहे हैं। निर्वाचन आयोग ने भी 70 लाख तक की छूट दे दी। क्या ये सब मेहनत
की कमाई का पैसा है। क्या यह भ्रष्टाचार को प्रश्रय देने की पहली सीढ़ी नहीं। आखिर
जो चंदे के नाम पर करोड़ों अरबों दे रहा है, क्या कल वह धंधे के आड़े आने वाली
चीजों को मैनेज करने के लिए दबाव नहीं बनाएगा। क्या
आपके वह अलां फलां नेताजी बताएंगे कि उन्हें मिलने वाला धन किन स्रोतों से
आया है।
क्या आप उनसे यह सवाल पूछ सकेंगे, जब वह वोट मांगने आएं। क्या आप जानने
के बाद उनसे सवाल करेंगे कि फलां घोटाले में उनका क्या हाथ था। दूसरा
सवाल कि क्या आप अपने वाजिब हक के बाद भी रिश्वत देना या
लेना छोड़ दोगे। क्या आप अपने हर काम को कानूनी तौर पर करने का मादा रखते
हैं। क्या 30 से
40 प्रतिशत पर
छूटने वाले ठेकों में एक रुपया भी कमीशन कोई नहीं लेगा। ऐसे
ही सवाल कई हैं। जिनके जवाब आप भी जानते हैं। तो फिर
भ्रष्टाचार कैसे खत्म हो सकता है। जब आप कुछ भी त्याग नहीं करना चाहते।
महज एक वोट भ्रष्टाचार को खत्म नहीं कर सकता है, तय मानिए।
इसके बाद भी मुझे लगता है कि आंखें आभा
और चकाचौंध में बंद ही रहेंगी। फिर भला भोले आदमियों क्यों मान बैठे कि
देश भ्रष्टाचार से मुक्त हो जाएगा। क्यों इन झूठी दलीलों को सच मान
जाते हो, क्यों
अपने वोट को जाया करते हो। तय मानिए कि यह जरुरी नहीं कि विचार पैसे
वाले के पास ही होता है, एक गरीब भी विचार संपन्न होकर भविष्य को निर्धारित करने की क्षमता रखता है।
भले
ही उसके पास चुनाव में आपको आकर्षित करने के लिए प्रचार करने के
पर्याप्त संसाधन नहीं। बवंडर आपको उड़ा तो ले जा सकते हैं, स्थायित्व नहीं दे सकते। सो
जागो… जागो मतदाता जागो, वोट करो, जमकर चोट करो.. आग्रहों और पुर्वाग्रहों से बाहर निकल कर …….