गढ़वाली-कविता
हमरु गढ़वाल
खरड़ी डांडी
पुन्गड़ी लाल
धरती को मुकुट
भारत को भाल
हमरु गढ़वाल
यखै संस्कृति – गिंदडु, भुजयलु, ग्यगुडू, गड्याल।
सांस्कृतिक सम्मेलन – अठवाड़।
महान बलि – नारायण बलि।
तकनीशियन – जन्द्रों सल्ली।
दानुम दान – मुकदान।
बच्यूं – निरभगी, मवरयूं – भग्यान।
परोपकारी – बेटयूं को परवाण।
विद्वान – जु गणत के जाण।
नेता – जैन सैणों गोर भ्यालम हकाण।
समाज सुधारक – जैन छन्यू बैठी दारू बणाण।
बडू आदिम – जु बादीण नचाव।
श्रद्धापात्र – बुराली, बाघ अर चुड़ाव।
मार्गदर्शक – बक्या।
मान सम्मान – सिरी, फट्टी, रान।
दर्शन – सैद, मशाण, परी, हन्त्या।
उपचार – कण्डली टैर, जागरदार मैर, लाल पिंगली सैर।
खोज – बुजिना।
शोध – सुपिना।
उपज – भट्ट अर भंगुलो।
योजना – कैकी मौ फुकलो।
उद्योग – जागर, साबर, पतड़ी।
जीवन – यख बटे वख तैं टिपड़ी।
व्यंजन – खूंतड़ों अर बाड़ी।
कारिज – ब्या, बर्शी, सप्ताह।
प्रीतिभोज – बखरी अर बोतल।
पंचैत – कल्यो की कंडी, भाते तौली।
राष्ट्रीय पदक – अग्यल पट्टा, पिन्सन पट्टा, कुकर फट्टा।
बचपन – कोठयूं मा।
जवनी – पलटन, दफ्तर, होटल।
बुढ़ापा – गौल्यूं फर, चुलखंदयूं फर।
आशीर्वाद – भभूते चुंगटी।
वरदान – फटगताल, नि ह्वे, नि खै, नि रै, घार बौड़ी नि
ऐ।
ऐ।
आयात – खनु, खरबट, मनीऑर्डर।
निर्यात – छवाड़ बटे छवाड़ तैं बाई और्डर।
शुभ कामना
भगवान सबु तैं
यशवान, धनवान,
बलवान बणों
पर मी से बकै ना।
फक्कड़ कवि श्री कन्हैयालाल डंडरियाल जी की एक रचना।