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17 साल बाद भी क्यों ‘गैर’ है ‘गैरसैंण’

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गैरसैंण एकबार फिर से
सुर्खियों में है। उसे स्थायी राजधानी का ओहदा मिल रहा है
? जी नहीं! अभी
इसकी दूर तक संभवनाएं नहीं दिखती। सुर्खियों का कारण है कि बर्तज पूर्ववर्ती सरकार
ही मौजूदा सरकार ने दिसंबर में गैरसैंण में एक हफ्ते का विधानसभा सत्र आहूत करने
का निर्णय लिया है। जो कि सात से
13 दिसंबर तक चलेगा। विस
सत्र में अनुपूरक बजट पास किया जाएगा। इसके लिए आवश्यक तैयारियां भी शुरू कर दी गई
हैं। तो दूसरी तरफ गैरसैंण पर सियासत भी शुरू हो गई है। 

कांग्रेस और यूकेडी नेताओं
ने जहां भाजपा सरकार की नियत पर प्रश्नचिह्न लगाए हैं, वहीं
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष ने भी
जनभावनाओंके अनुरूप निर्णय लेने की बात को दोहरा भर दिया है।

दरअसल, उत्तराखंड के
पृथक राज्य के रूप में अस्तित्व में आने से अब तक गैरसैंण के मुद्दे पर कांग्रेस
और भाजपा का अतीत सवालों में रहा है। दोनों दल उसे स्थायी राजधानी बनाने के पक्षधर
हैं
, ऐसा कभी नहीं लगा। यूकेडी ने राज्य आंदोलन के दौरान
गैरसैंण को पृथक राज्य की स्थायी राजधानी बनाने के संकल्प के तहत जरूर उसे वीर
चंद्रसिंह गढ़वाली के नाम पर चंद्रनगर का नाम दिया। लेकिन बीते
17 सालों के दौरान दो सरकारों में भागीदारी के बावजूद वह इस पर निर्णायक
दबाव पैदा नहीं कर सकी।
उत्तराखंड में अन्य
राजनीतिक पार्टियों का कोई मजबूत जमीनी आधार नहीं
, इसलिए वह भी सड़क के आंदोलन तो दूर
आम लोगों को गैरसैंण को स्थायी राजधानी बनाने के लाभ तक नहीं बता पाएं हैं। जिसके
चलते गैरसैंण के मसले पर जनमत तैयार होने जैसी कोई बात अब तक सामने नहीं आई है।
हाल के वर्षों में कुछ स्थानीय और प्रवासी युवाओं ने इस मुद्दे पर खासकर पर्वतजन
के बीच वैचारिक पृष्ठभूमि तैयार करने की कोशिशें की हैं और प्रयासरत भी हैं। मगर
,
संसाधनों के लिहाज से वह भी कुछ दूर आगे बढ़ने के बाद निराश होकर
लौटते हुए लग रहे हैं।
इसबीच राज्य में चार बार
हुए चुनावों के नतीजों को देखें
, तो जिस पहाड़ की खातिर गैरसैंण को स्थायी राजधानी
बनाने की मांग उठ रही है
, उसके दिए चुनाव परिणाम कहीं से भी
इसके पक्ष में नहीं दिखे। निश्चित तौर पर इसका पूरा लाभ अब तक सत्तासीन रही
कांग्रेस और भाजपा ने अपने-अपने तरीके से उठाती रही।
पिछली कांग्रेस सरकार
जहां मैदानी वोटों के खतरे से डरकर गैरसैंण पर निर्णायक फैसला नहीं ले सकी
, उसी तरह भाजपा
भी डरी हुई ही लग रही है। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट का जनभावनाओं वाला ताजा
बयान और गैरसैंण में सिर्फ सत्र का आयोजन इसी तरफ इशारा कर रहा है।

लिहाजा, इतना तो स्पष्ट
है कि गैरसैंण स्थायी राजधानी के मसले पर जहां कांग्रेस की पैंतरेबाजी सिर्फ
सियासत भर लग रही है
, वहीं भाजपा की टालमटोल को समझें तो
उसके लिए भी गैरसैंण पहले की तरह अब भी
गैरही है। सो, … आगे-आगे देखिए होता है क्या?
आलेख- धनेश कोठारी


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