कुमाउनी-कविता
ओ साओ ! तुम कैक छा ?
पहाड़ के रसूल हमताजोव
हैं शेरदा अनपढ़
हैं शेरदा अनपढ़
तुम सुख में लोटी रया,
हम दुःख में पोती रयां !
तुम स्वर्ग, हम नरक,
धरती में, धरती आसमानौ फरक
!
!
तुमरि थाइन सुनुक र्वट,
हमरि थाइन ट्वाटे- ट्वट
!
!
तुम ढडूवे चार खुश,
हम जिबाई भितेर मुस !
तुम तड़क भड़क में,
हम बीच सड़क में !
तुमार गाउन घ्युंकि
तौहाड़,
तौहाड़,
हमार गाउन आसुंकि तौहाड़
!
!
तुम बेमानिक र्वट खानया,
हम इमानांक ज्वात खानयां
!
!
तुम पेट फूलूंण में लागा,
हम पेट लुकुंण में लागां
!
!
तुम समाजाक इज्जतदार,
हम समाजाक भेड़-गंवार !
तुम मरी लै ज्युने भया,
हम ज्युने लै मरिये रयां
!
!
तुम मुलुक कें मारण में
छा,
छा,
हम मुलुक पर मरण में छां
!
!
तुमुल मौक पा सुनुक महल
बणैं दीं,
बणैं दीं,
हमुल मौक पा गरधन चङै
दीं !
दीं !
लोग कुनी एक्कै मैक
च्याल छां,
च्याल छां,
तुम और हम,
अरे ! हम भारत मैक छा,
ओ साओ ! तुम कैक छा ?
कवि- शेरदा अनपढ़