हिन्दी-कविता

ग़ज़ल



दुष्यंत कुमार //
तुम्हारे पांव के नीचे कोई जमीन
नहीं
,
कमाल ये है कि फिर भी तुम्हें
यकीन नहीं ।।
मैं बेपनाह अंधेरों को सुबह कैसे
कहूं
,
मैं इन नजारों का अंधा तमाशबीन
नहीं ।।
तेरी जुबान है झूठी जम्हूरियत की
तरह
,
तू एक जलील-सी गाली से बेहतरीन
नहीं ।।

तुम्हीं से प्यार जतायें तुम्हीं
को खा जाएं
,
अदीब यों तो सियासी हैं पर कमीन
नहीं ।।
तुझे कसम है खुदी को बहुत हलाक न
कर
,
तु इस मशीन का पुर्जा है तू मशीन
नहीं ।।
बहुत मशहूर है आएं जरूर आप यहां,
ये मुल्क देखने लायक तो है हसीन
नहीं ।।
जरा-सा तौर-तरीकों में हेर-फेर
करो
,
तुम्हारे हाथ में कालर हो, आस्तीन नहीं ।।
कवि-  दुष्यंत कुमार

साभार

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