व्यंग्य : एक आम हैंका आमाऽ काम नि औंदु
Satire: Ek aam hainka aamaa kaam ni aundu
• नरेंद्र कठैत
वुन त आम क्वी बड़ी चीज नी। आम, आम होंदु। आमौ सबसि नजीकौ रिस्तादार बि – आम हि होंदु। आमै किस्मत मा सुरु बिटि आखिर तक – तड़तुड़ौ घाम हि रौंदु। बकि आमाऽ ओर-पोर खास क्वी नि होंदु। जु वेका जरा फुंडै च अर कुछ दैण लैक च वु -चड़ाचोटौ घाम होंदु। घाम आमाऽ ऐंच जथगा तड़तुड़ौ रौंदु आम दुन्यो तैं उथगी पकणू रौंदु। लोक्खू तैं मिट्ठु होणा खातिर आम तैं अन्ध्यरा कूणा पाळ मा -कत्ति दिन तक प्वड़युं रौण प्वड़दु। फिर्बि झणि किलै, एक आम हैंका आमाऽ काम नि औंदु। एक आम चुस्येणु रौंदु – हैंकु बेकूब सि वेकि दुर्दसा द्यखणु रौंदु। पर आम होणु बि क्वी कम बात नी। आम त आम, आमै हडेली बि कामै होंदन। पर आमौ दाम – वे आमाऽ काम कबि नि औंदु जु चुस्ये जांदु। वे आमौ दाम क्वी हौरी चट कर जांदु।
आम मिठ्ठा सभौ कु च!
मिठैस आमौ सबसि बड़ो गुण च। इलै आमौ तैं फल्वू राजा बि ब्वल्ये जांद। पर दुन्या मा अज्यूं तक आम जन मिट्ठा सभौ कु क्वी माई कु लाल राजाऽ पैदा नि ह्वे जु आम जनु चुस्ये ग्ये हो। अर चुस्ये-चास्ये कि आमै हडेली जन फुंड ढोळै ग्ये हो। आमै पिड़ा क्वी जाणु नि जाणू पर चूसी-चासी बि आमौ मजाक उडौण मा दुन्या तैं मजा औंदु। भगवान राम बणवास पर चल जांदन। राजा दशरथ राम तैं भटयौंणा छा – ‘हे राम! हे राम!’ निरभागि मजाक्या तबारि बि चुप नि रैनी। ब्वन बैठनि-‘किलै खै छा काचा आम?’ इन बोली निरभग्यूंन राम दगड़ा आम बैठै दे। कख राम अर कख आम। कु नि जणदु कि आम, आम च अर राम, राम। राम कबि आम नि छा न कबि आम ह्वे सक्दन। आम त कबि राम ह्वे हि नि सक्दु।
खैर, ईं बात तैं आम बि नी चांदु कि क्वी वेकु तैं राम-रहीमौ नौ लेकि पुकारु। आम तैं आम नौ हि भलु लग्दु। हमुन् यि देखी कि आम चा कैन कै बि नौ सि पुकारि आमन बुरु नि माणी। आम अपड़ा खोळ मा सदानि आम हि रै। आमन कबि अफु सि ऐंच असमान लौंफ्योंणै कोसिस नि कै। आमौ तैं चा कैन – तू,ता,रे,बे! कुछ बि बोली ह्वलू – आमन अपड़ि मिठैस नि छोड़ी। पर अफसोस यीं बात पर होंदु कि मिट्ठू होण पर्बि दुन्यन आमौ एक बि नौ -ढंगौ नि रखी। लगड़ो आम, काखड़्या आम, काळि आम, कलमी आम, केळ्या आम, गिंदोड़या आम, नैरुल्या आम, बोम्बे आम, बासमती आम, घुघती आम, चुसण्यां आम, यि बि क्वी नौ ह्वया। पर आम तैं अपड़ा नौ सि कबि क्वी सरम मैसूस नि ह्वे। आमन कबि इन बि नि बोली कि वे तैं राम-रहीम नौ लेकि पुकारा। दुन्यो, आमौ एक नौ दसैरी बि रख्युं। पर हमतैं बिस्वास नी होणू कि कै आमन अज्यूं तैं दसैरा देखी होवू य क्वी बि आम दसैरा तक बच्यूं रौंदु रै हो। पर आम जथगा बि बच्यूं रौंदु वु तमाम जिन्दगी अपड़ि खुसकि अर अपड़ि मिठास लुटौणू रौंदु।
आम घूस नि खांदु!
आम वी खांदू जु सदानि खांदु ऐ। आम खाण वळा कु बि ना नि ब्वल्दु। किलैकि ना बोली बि क्वी आम तैं पचकौणु नि छोड़दु, आम तैं खाणु नि छोड़दु। कत्ति दाँ आम खाण वळौं तैं आम खै-खै कि बिमारि ह्वे जांदि। अर सरु भगार -आम पर औंदु। फिर्बि आम कुछ नि ब्वल्दु, वु चुप-चाप सौब कुछ सौंणू रौंदु। छोटु-बडौ़ क्वी बि काम बणू य बिगड़ो, आम हि खाँम-खाँ बदनाम होंदु। आम हि -नुकसान उठौंदु। आम ही- खुलाआम चुस्ये जांदु, आम हि- खुलाआम पिस्ये जांदु। आमौ अमचूर बि खुलाआम बणये जांदु। आम काचु होवु चा पाकु, खुलाआम काटि-काटी, सुखै-सखैकि वेकु अचार डळै जांदु।
एक बात हौर!
दुन्या चा कथगा बि सब्यतादार बण जावु धौं पर दुन्यन आम खाणौ सगोर अज्यूं तक नि सीखी। दुन्यो सगोर आम खांदि दाँ दिख्ये जांदु। सच पूछा त आम खांदि दाँ दुन्या देखी घींण लग्द। दुन्या नाक-गिच्चू सौब लपोड़ देंदि। दुन्या आम खांद दौं काचु-पाकु बि नी द्यख्दि। फिर्बि य बात अंग्ळती सि लगणी कि चुस्येंदु-खयेंदु आम च पर दुन्ये प्वटगी मा मरोड़ उठ जांदिन। क्वी ब्वल्दु -आम काचू छौ, क्वी ब्वल्दु -आम खट्टू छौ, क्वी ब्वल्दु -आम घळतण्या छौ। पर आमै तिरपां बिटि क्वी इन नि ब्वल्दु कि – तुमुन आम खै किलै छौ?
आम जणदु च कि आम, आम च पर आमौ क्वी नी!
इलै, आम चुपचाप सुणणु रौंदु, बुरु नि मणदु। कुछ नि ब्वल्दु। जब तक दुन्ये प्वटगी पर सेळी नि प्वड़दि, आम म्वरि-म्वरी बि अफु तैं पचौण-खपौण पर लग्यूं रौंदु। आमौ तैं म्वरदु-म्वरदु बि आराम हराम च। गौर सि देखा त -आमै जिन्दगी साख्यूं बिटि इनि बरबाद ह्वेगि।
ब्वनू तैं त जु -आम जथगा मिट्ठू होंदु , वाँ सि जादा वू- आम ह्वे जांदु। पर दिख्ण मा यु औंदु कि- आम्वा बीच जु जथगा मिट्ठू च वु उथगी पिड़ा बि पचौणु रौंदु। लोग आम तैं पुछदन- ‘ तू यिं मिठास कख बिटि लौंदि?’ आम जबाब देंदू- ‘हमारा सभौ मा मिठास च कि खटास -तांकि परमेसुर हि जाणु। हमारु काम च आम अर आमै खलड़ी मा रौणु। बस्सऽ हमतैं जरासि कमर टिकौण लैक जगा चहेणी रौंदि। ताँसि सि बकि हमतैं कुछ नि चऐंदु।’ पर या बि परमेसुरै किरपा च कि -आम पर ध्यान द्या चा नि द्या, आम रै बि जांदु अर ह्वे बि जांदु। आम -मुसीबत देखी नि घबड़ांदु। न आम- दुख तकलीफ मा अपड़ा हथ-खुट्टा छोड़दु।
आम दान-दैजा मा बि जांदू!
हरेक छोटि-बड़ी पूजै मा बि आम सामिल ह्वे जांदु। वू अपड़ि हडगि जन लखड़यूं तैं जब-तब हबन मा झोंकणू रौंदु। आम यीं बात तैं बि मणदु च कि जन ऐंच हौर्यूं कु भगवान च तनि वेका ऐंच बि भगवान जरूर ह्वलु। पर झूठ क्यांकु ब्वन, आमा ऐंच भगवान ह्वलु चा नि ह्वलु पर आमा नजीक जु बि खड़ौ होंदु, वू वे तैं चुसणै ताक मा बैठ्यूं रौंदु। ऐंच बैठ्यूं भगवान आमै यिं दुरदसा देखी य त औड़िकीटी चुप रौंदु ह्वलू य वूं तैं चुप रखणो क्वी वूं तक आमै डाळि पौंछौंदु ह्वलु। पर यीं बात तैं हर क्वी जणदु च कि भगवान न कै आम तैं गौळा लगौंदु अर न बग्त-मौका पर वेका काम औंदु।
इन बि नी कि आम सदानि निरोगी रौंदु य वे तैं क्वी रोग नि होंदु। आमौ रोग बि आम होंदु। पर आम तैं क्वी राज रोग नि होंदु। आम तैं बलड परेसर, सुगर बि नि होंदु। आम तैं उंदु-उबु, टै-फै, बि नि होंदि। न आम क्वी काम रोक्दु। आम बुखार मा बि खड़ौ रौंदु । आम जु कुछ बि कर्दू खुला हाथन र्कर्दु। आम कै पर -डाम बि नि धर्दु। आम अपड़ि किस्मत देखी अपड़ौ कपाल बि नि थिड़दु ।
जख आम च वख – तोता बि होंदु !
यीं बात तैं हर क्वी छाति ठोकि ब्वल्दु। आमौ सभौ मिट्ठू होंदु पर आम चापलूस नि होंदु। तोता मिट्ठू बि ब्वल्दु अर चापलूस बि होंदु। चापलूस्या बल पर तोतन आमौ फैदा उठै। आम बिचारु जख छौ वु वक्खि रै। तोता आम तैं खै बि जांदु अर पिछनै दाँ वे पर – टोम बि कर जांदु। आम सदानि अपड़ा – घौ द्यख्दि रै जांदु। आमौ खै प्येकि बि तोता न कबि आमौ क्वी गुण ऐसान मणदु न वेकु गुण गान कर्दु। कुछ लोग ब्वल्दन कि आम इथगा लाटु-कालु नि होंदु त क्वी बि तोता एक बेळी बि नि खै सक्दु। यीं दुन्या बिटि सबि तोता -तातौं कु नौ निसाण हि मिट जांदु। पर हमारि समझ मा त यि नी औणू कि ध्वखा खै-खै कि बि आम अपड़ा दिमाग मा यीं बात किलै नी बैठौणु कि चुनौ त सदानि आम्वा बीच होंदु पर सदानि तोतै किलै छंटै जांदु?
जरा हौर गौर करा!
वूं तैं पाँच गौं चऐणा छा अर वे तैं – सरु हस्तीनापुर छौ चएणू। पर माऽभारत मा जु सबसि जादा कटि- म्वरि छन , वु आम झणी -कै नौ कु छौ अर -कैं मौ कु छौ, कै गौं कु छौ? बस्स, आमै भीड़ मा – वु बि एक आम छौ। वे आमन जबारि माऽभारत भिड़ी तबारि बि – वु आम छौ। आज बि -वु आम च। आज बि – वे आमै पिड़ा आम च। आज बि – वे आमै बिमारि आम च।
(लेखक नरेंद्र कठैत जी वरिष्ठ साहित्यकार अर जाण्या माण्या व्यंग्यकार छन)