व्यंग्यलोक

हे उल्‍लूक महाराज

आप जब कभी किसी के यहां भी पधारे, लक्ष्‍मी जी ने उसकी योग्‍यता देखे बगैर उसी पर विश्‍वास कर लिया। जिसका नतीजा है कि बांधों के, राज्‍य के, सड़कों के, पुलों के, पैरा पुश्‍तौं के, पीएमजीवाई के, मनरेगा आदि के बनने के बाद वही असल में आपका परम भक्‍त हो गया। वहीं आपदा की पीड़ा के बाद भी बग्‍वाळ को उत्‍साह के रुप में देख और मनाने को उतावला है। उसके अंग अंग से पटाखे फूट रहे हैं, लालपरी उसे झूमने के लिए प्रेरित कर रही है।


आपकी कृपा पंथनिरपेक्ष, असांप्रदायिक, अक्षेत्रवादी है। आप अपने वंश पूजकों के लिए कृपा पात्र हैं
मगर, मेरे लिए यह समझ पाना कुछ मुश्किल हो रहा है कि आपके कृपापात्रों की लाइन में लगने के क्‍या उत्‍तराखंड राज्‍य और उसके मूल अतृप्‍त वंशज भी लायक हैं या नहीं। क्‍या आपका और आपकी महास्‍वामिनी का ध्‍यान उनकी ओर भी जागेगा। या फिर वे केवल शहीद होने, लाठियां खाने, भेळ भंगारों में लुढ़कने, दवा, शिक्षा, रोजगार, मूलनिवास आदि के लिए तड़पने तक सीमित रहेंगे। 


हे उल्‍लूक महाराज, इस अज्ञानी, अधम, गुस्‍ताख का मार्गदर्शन करने की कृपा करें। बताएं कि महा कमीना होने के लिए पहाड़ों में क्‍या बेचूं, कमान और हाईकमान तक कितना और कब-कब स्‍वाळी पकोड़ी, घी की माणि पहुंचाऊं।
आपकी कृपा दृष्टि की जग्‍वाळ में –
आपका यह स्‍व घोषित सेवक
@Dhanesh Kothari

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