हिन्दी-कविता

तय मानो

तय मानों
देश लुटेगा
बार-बार, हरबार लुटेगा

तब-तब, जब तक

खड़े रहोगे चुनाव के दिन
अंधों की कतारों में
समझते रहोगे-
ह्वां- ह्वां करते
सियारों के क्रंदन को गीत

जब तक पिघलने दोगे

कानों में राष्‍ट्रनायकों का ‘सीसा’
अधूरे ज्ञान के साथ
दाखिल होते रहोगे
चक्रव्‍यूह में
बने रहोगे आपस में
पांडव और कौरव

तय मानों

देश के लुटने के जिम्‍मेदार
तुम हो, और कोई नहीं

सर्वाधिकार- धनेश कोठारी

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