हिन्दी-कविता

बाबा केदार के दरबार में

जगमोहन ‘आज़ाद‘// 
खुद के दुखों का पिटारा ले

खुशीयां समेटने गए थे वो सब

जो अब नहीं हैसाथ हमारे,बाबा केदार के दरबार में

हाथ उठे थेसर झुके थे

दुआ मांगने के लिएबहुत कुछ पाने के लिए

अपनो के लिएमगर पता नहींबाबा ने क्यों बंद कर लीआंखे

हो गए मौनमां मंदाकिनी भी गयी रूठ औरफिर..


सूनी हो गयी कई मांओं की गोद

बिछुड़ गया बूढे मांपिता का सहारा

उझड़ गयी मांग सुहानगों की

छिन गया निवाला कई के मुंह से

ढोलदमाऊडोंरथाली

लोक गीत की गुनगुनाहट

हो गयी मौन….हमेशाहमेशा के लिए,कुछ नम् आँखे

जो बची रह गयी….खंडखंड हो चुके
गांव मेंवो खोज रही हैउन्हें

जो कल तक खेलतेकुदते थे

गोद में,खेतखलिहान में इनके,असंख्य लाशों के ऊपरचिखतेबिलखते हुए
बाबा केदार के दरबार में

किसको समेट

किसकिस को गले लगा कर

समेटे आंसूइनके अंजूरी में अपने

किसी मां की गोद में लेटाएं

उनकी नहीं गुहार

किस पिता को सौंपेउसका उजास कल

किन बूढी नम् आखों को दे

सहारा दूर तक चलते रहने का

कितने गांव बसाएंकितने घरों को जोड़े

तिनकातिनका जोड़

जो जमीजोद हो गएबाबा केदार के दरबार में

मुश्किल बहुत मुश्किल है

इन आसूओं को समेटना

अंजूरी में अपनी

मुश्किल तो यह भी बहुत है

कि कैसे उन बूढ़ी नम् आंखों के सामने

लेटा दें उस इकलौती लाश को

जो इनसे कल ही तो आशीर्वाद ले

गयी थीदो जून की रोटी कमाने

बाबा केदार के दरबार में

कैसे बताएं

उन आश भरी टकटकी लगायी उन निगाहों को

किजिनकी रहा वो देख रही है

वो अब कभी नहीं आयेगें लौटकर

बहों में उनकीउन्हें नहीं बचा पाये

मंदाकिनी के तीव्र बेग के सामने

बाबा केदारा की दरबार में

मगर उनके बिछूड़ो
उनके आंखों के तारों की लाशों पर

खड़े होकरकुछ सफेद पोश धारी

चीख रहे हैचिल्ला रहे हैसांत्वना दे रहे हैबूढी नम् आंखों,उजड़ी मांगों को

कि हमनेअपनी पूरी ताकता झोंक कर

हवाई दौरो के दमखम पर

मुआवजे के मरहम पर

तुम्हारे असंख्या रिश्तों कोअसंख्य आंसूओं को बचा लिया है

ज़मी पर गिरने सेजिनमेंकुछ गुजराती हैकुछ हिन्दु कुछ मुस्लमान

कुछ सीखईसाई के भीहमने समेट लिया इन सबके दुःखों को

खुद में….हमेशा के लिए

बाबा केदार के दरबार में

जगमोहनआज़ाद

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