साहित्य
गिरीश सुंदरियालौ नाटक असगार मा चरित्र चित्रण – फाड़ी -१
इकीसवीं सदी क गढ़वाळी स्वांग/नाटक -२
‘असगार’ गिरीश सुन्दरियालौ स्वांग खौळ ‘असगार’ मादे एक स्वांग च .
हाँ असगार मा चरित्र चित्रण से पैलि ‘स्वांगु मा चरित्र चित्रण ‘ पर छ्वीं लगाण जरूरी ह्व़े जांद.
१- पुरातन चीनी सिद्धांत
२- पाश्चात्य सिद्धांत
३– भारतीय सिद्धांत
४- मनोविज्ञानऔ ज्ञान
चीन मा स्वांग
चीन मां स्वांग भैर बिटेन आई . मंगोल स्वांग तैं चीन मा लैन पण चीन मा स्वांग बढण मा कन्फ्युसिस अर बुद्धौ सिधांत दगड़ी चलीन. इलै
चीन मा उद्येसात्म्क स्वांग जलदा मिल्दा छ्या
चीन मा क्वी भरत या अरस्तु जन क्वी नाट्य शास्त्री नि ह्व़े जैन क्वी किताब लेखी ह्वाओ . पण चीन का पुराणा स्टाइल च .
चीन मा आठवीं सदी पैथर इ नाटक जादा विकसित ह्व़े . अर इन बुले जान्द बल हरेक गाँ मा स्वांग खिले जांद छा.
पैल स्वान्गुं मा नाच अर गाणा जरुरी छ्या. स्वान्गुं मा प्रतीक को जादा इस्तेमाल हूंद छयो. ‘टछौउएन खि’ प्रकारौ (७०० -९०७ ई.) वीर रसौ स्वांग छ्या.
संग राज मा (९६०-१११९) स्वान्गु मा हौर विकास ह्व़े .अर ये जुगौ स्वांगु खुण ‘हाई-खिओ’ बुल्दन. ये जुग मा अब स्वान्गुं मा एक बड़ो महत्वपूर्ण चरित्र आई
जु गांदो बि छयो .
११२५ बिटेन १३६७ ई. क टैम चीनी स्वान्गुं खुण सौब से बढिया टैम बुले जान्द . ये बग तौ स्वान्गुं कुण -यूएन-पेन अर टसाकी बुले जांद यूएन-पेन
क छ्वटु रूप .कुण यें किया बुले जान्द.
ये बगत सैकड़ों स्वांग रचे गेन
काओ टोंग किया क स्वांग ‘पी-पा-की’ (१४ वीं सदी ) अबि तलक भौति रौन्स्दार स्वांगु मादे एक स्वांग माने जांद.ये स्वांग को मुख्य उदेश्य च चरित्रवानऔ गुण अर शिक्षा.
असल मा यू ड्रामा दुस्चरित्र वळा स्वांगु विरुद्ध लिखे गे छौ अर भाती पोपुलर ह्व़े. याने कि चीनी ड्रामा मा शिक्षा अर चरित्रवान गुण पैलो शर्त माने गे .
शास्त्रीय चीनी स्वान्गुं मा चरित्र वान, सीख अर उदेश्य होण जरुरी छौ.
चीन मा बि भारतौं तरां नाटकों तैं पाश्चात्य जन खाली ट्रेजिडी अर कौमेडी मा नि बंटे गे. चीन मा विसयुं क हिसाब से बारा तरां शास्त्रीय स्वांग होन्दन
चीन स्वांगु मा धार्मिक प्रवृति -धर्म पर विश्वास, भगवत कृपा, दैवीय शक्ति , त्याग भावना, (बुद्धौ नियम आदि) ,
ऐतिहासिक नाटक बि शास्त्रीय स्वांगु मा मिल्दन ट ऐतिहासिक चरित्र बि चीनी स्वांगु मा चीन मा मिल्दन.
अपराधी चीनी स्वांग बि भौत छन अर यूँ स्वांगु खासियत च – पापी/पाप कि खोज अर निर्दोष तैं न्याय-निसाब.
चीन मा प्रेम युक्त -हंसदर्या ड्रामा बि मिल्दन
जन कि चीन मा भारत जन जाति हिसाब नि होंद त नाटकों मा बि जात क हिसाब से स्वांग चरित्र नि रचे जान्दन.
शास्त्रीय चीनी स्वान्गु मा चरित्र पद का हिसाब से रचे जान्दन. स्वान्गुं कथों मा पद पर जोर होंद
भौत सा सीन अर चरित्र केवल प्रतीकुं से चित्रित होन्दन.
चीनी नाटकूं मा जनान्यूँ चरित्र प्रकार भौत छन- उच्च पदासीन से जुड़ी , त्यागी जनानी से नौकर्याण तक
सौत्या डाह आदि बि खूब मिल्द.
चीनी नाटकूं मा अंक अर सीन होन्दन अर पैल त विषय भौति लम्बा होंदा छ्या त चरित्र चित्रण बि वनी होंदा छ्या.
तौ ळ का कुछ विषय चरित्र चित्रण औ अन्थाज लगाणो बान काफी छन
-दर्शकुं समणि भुक डुबण, विष से, फांसी से, त्रास आदि से मिरत्यु
-अचरज/आश्चर्य
-जादू/जादूगरी
-भूत/पिचासुं से बदला लीण या भूतुं से न्याय दिलाण
-भौं भौं किस्मौ ब्यौ
-पैत्रिक सत्ता क वर्चव्स
-राजा तैं महान बथाण
चीन का पुराणा स्वान्गु एक बडी खासियत छे – लेखक इ मुख्य कैरेक्टर अर मुख्य वक्ता बि होंद छौ.
-नाटक मा गितांग होण जरूरी छौ, माना कि गितांग को चरित्र नाटक मा मोरी जान्दो त फिर दुसर चरित्र गाणा गालो
-प्रतीक अर अलंकृत भाषाऔ भरमार होंदी छे
चीनी ड्रामा दर्शकुं रूचि हिसाब से इ रचे जांद छ्या याने कि ड्रामों मा पॉप-कल्चर छौ , याने कि मौज -मस्ती क बान ड्रामा रचे जान्द छ्या ( संस्कृत मा इन नि छौ, ड्रामा शास्त्रीय हिसाब से लिखे जांद छ्या जन कि कालिदास का स्वांग)
चीन मा पाठ खिलण वाळ तैं ट्रेनिंग मा भौत मेनत करण पड़दो छौ. नाट्य गुरु दर्शकुं समणि इ वैकी (च्याला) परीक्षा लीन्दा छ्या
चीनी नाटकूं मा चरित्र /पाठ खिलण वाळ तैं यूँ चीजुं पर ध्यान दीण पड़दो छौ
१- वाच/स्पीचअर गीत गाणो ढंग /गीतुं मा माहरथ
२- चलणो ढंग
३- सरैल से पाठ खिलण याने बौडी लैंगवेज को स्वांग मा महत्व
४-कपड़ा, मेक अप, स्टेज कि जानकारी
चीनी नाटकों मा मास्क /मुखौटों महत्व अर मुखौटों प्रतीक chhan
१- सुफेद मुखौटा – पापी, दोषी, राक्षस , कुमति , धोकेबाज, घुन्ना, अण-अंथंजण्या याने कि विलियन या प्रतिनायक
२-हौरू मुखौटा – भिरंगी, दौन्कार/ गुस्सैल् , टणक्या, जु अफु पर काबू नि कौर सकदो
३- लाल मुखौटा – भड़ , वीर, भक्त . समर्पित
४-काळो मुखौटा – जडबडो, बबर, खरो
५-पिंगुळ मुखौटा – महत्वाकांक्षी , बबर, ठंडो-दिमागौ
६-नीलू मुखौटा – इरादा पक्को , अडिग निष्ठावान
सन्दर्भ -१- भारत नाट्य शाश्त्र अर भौं भौं आलोचकुं मीमांशा
२- भौं भौं उपनिषद
३- शंकर की आत्मा की कवितानुमा प्रार्थना ४-और्बास , एरिक , १९४६ , मिमेसिस
५- अरस्तु क पोएटिक्स
६- प्लेटो क रिपब्लिक
७-काव्यप्रकाश, ध्वन्यालोक ,
८- इम्मैनुअल कांट को साहित्य
९- हेनरिक इब्सन क नाटकूं पर विचार १०- डा हरद्वारी लाल शर्मा
११ – ड्रामा लिटरेचर
१२ – डा सूरज कांत शर्मा
१३- इरविंग वार्डले, थियेटर क्रिटीसिज्म
१४- भीष्म कुकरेती क लेख
१५- डा दाताराम पुरोहित क लेख १६- अबोध बंधु बहुगुणा अर डा हरि दत्त भट्ट शैलेश का लेख
१७- शंकर भाष्य
१८- मारजोरी बौल्टन, १९६०. ऐनोटोमी ऑफ़ ड्रामा
१९- अल्लार्ड़ैस निकोल
२० -डा डी. एन श्रीवास्तव, व्यवहारिक मनोविज्ञान
२१- डा. कृष्ण चन्द्र शर्मा , एकांकी संकलन मा भूमिका
२२- ए सी.स्कौट, १९५७, द क्लासिकल थियेटर ऑफ़ चाइना
बकै अग्वाड़ी क सोळियूँ मा……
फाड़ी -१
१- नरेंद्र कठैत का नाटक डा ‘ आशाराम ‘ मा भाव
२- गिरीश सुंदरियाल क नाटक ‘असगार’ मा चरित्र चित्रण
३- भीष्म कुकरेती क नाटक ‘ बखरौं ग्वेर स्याळ ‘ मा वार्तालाप/डाइलोग
५- कुलानंद घनसाला औ नाटक संसार
६- दिनेश भारद्वाज अर रमण कुकरेती औ स्वांग बुड्या लापता क खासियत
फाड़ी -२
१-ललित मोहन थपलियालौ खाडू लापता
२-स्वरूप ढौंडियालौ मंगतू बौळया
३- स्वरूप ढौंडियालौ अदालत
Copyright@ Bhishm Kukreti