साहित्य

मध्य हिमालयी कुमाउंनी , गढ़वाली एवं नेपाली भाषा-व्याकरण का तुलनात्मक अध्ययन भाग -5

 इस लेखमाला का उद्देश्य मध्य हिमालयी कुमाउंनी, गढ़वाळी एवम नेपाली भाषाओँ के व्याकरण का शास्त्रीय पद्धति कृत अध्ययन नही है अपितु परदेश में बसे नेपालियों, कुमॉनियों व गढ़वालियों में अपनी भाषा के संरक्षण हेतु प्रेरित करना अधिक है. मैंने व्याकरण या व्याकरणीय शास्त्र का कक्षा बारहवीं तक को छोड़ कभी कोई औपचारिक शिक्षा ग्रहण नही की ना ही मेरा यह विषय/क्षेत्र रहा है. अत: यदि मेरे अध्ययन में शास्त्रीय त्रुटी मिले तो मुझे सूचित कर दीजियेगा जिससे मै उन त्रुटियों को समुचित ढंग से सुधार कर लूँगा. वास्तव में मैंने इस लेखमाला को अंग्रेजी में शुरू किया था किन्तु फिर अधिसंख्य पाठकों की दृष्टि से मुझे हिंदी में ही इस लेखमाला को लिखने का निश्चय करना पड़ा . आशा है यह लघु कदम मेरे उद्देश्य पूर्ति हेतु एक पहल माना जायेगा. मध्य हिमालय की सभी भाषाएँ ध्वन्यात्म्क हैं

और कम्प्यूटर में प्रत्येक भाषा की विशिष्ठ लिपि न होने से कहीं कहीं सही अक्षर लिखने की दिक्कत अवश्य आती है किन्तु हम कुमाउंनी , गढवालियों व नेपालियों को इस परेशानी को दूसरे ढंग से सुलझानी होगी ना की फोकट की विद्वतापूर्ण बात कर नई लिपि बनाने पर फोकटिया बहस करनी चाहिए. —- भीष्म कुकरेती )

                                                          कुमाउंनी भाषा में सर्वनाम विधान
अबोध बन्धु बहुगुणा ने लिखा है की संज्ञाओं के बदले प्रयुक्त होने वाले शब्दों को सर्वनाम कहा जाता है.
कुमाउंनी भाषा में सर्वनाम में दो लिंग, दो वचन और विकारी (Declinable ) एवम अविकारी (Indeclinable ) कारक (Cases ) प्रत्ययों से युक्त होते हैं . यह देखा गयी है कि सर्वनामों में संबोधन कारक नही होते हैं. चूँकि लिंग, वचन व कारक तत्व अभिभाज्य होते हैं , इसलिए कुमाउंनी व्याकर्णाचार्य डा. भवानी दत्त उप्रेती ने सर्वनाम अध्ययन हेतु लिंग, वचन व कारक का अध्ययन साथ ही होना अनिवार्य माना है
कुमाउंनी भाषा में लिंग भेद दो स्तरों पर किया जाता है
१- लिंग व्युत्पादकों पर लगाया हुआ प्रत्यय
२- वाक्यस्तर में लिंग भेद
                                                           कुमाउंनी सर्वनाम- लिंग -वोधक प्रत्यय
सर्वनाम में दो ही लिंग होते हैं
१- पुल्लिंग सर्वनाम पर लगा प्रत्यय
२- स्त्रीलिंग सर्वनाम पर लगा प्रत्यय


अ –ओकारांत का -ओ



पुल्लिंग वोधक जहां निजवाचक सर्वनाम में न् और सम्बन्ध वाची सर्वनाम में र् अथवा क् के पश्चात लगता है . इसके दो रूप मिलते हैं -ओ और -आ


क–ओ= ओ प्रत्यय एक वचन पुल्लिंग या सम्बन्ध वाचक सर्वनाम के ओकारांत रूपों में मिलता है .यथा
आपुन् +ओ = आपुनो (अपना )
वीक् + ओ=वीको (उसका)
तेर् + ओ = तेरो (तेरा )
ख – ओकारांत का -आ: ओकारांत सर्वनाम सभी बहुवचन रूप में ही मिलते हैं. यथा
आपुन् = आ =आपुना (अपने )
वीक् = आ = वीका (उसके )
त्यार् + आ= त्यारा (तेरे )

हमोर् + ओ =हमोरो (हमारे )
ब- -इ : सर्वनामों मे इ
सर्वनामों मे इ प्रत्यय स्त्रीवोधक है . इ का प्रयोग एक वचन व बहुवचन में एक समान होता है
आपुन् + इ = आपुनि (अपनी)
वीक् + इ = वीकि (उसकी )
तेर् =इ = तेरि (तेरी )
मेर् + इ = मेरि (मेरी )
हमार् + इ = हमारि (हमारी )
                                       कुमाउंनी भाषा मे विशेषण व क्रिया से सर्वनाम का लिंग बोध
जब भी कोई लिंग विशेषण या क्रिया पर आधारित हो तो कुमाउंनी भाषा मे वाक्य स्तर पर सर्वनाम का लिंग बोध क्रियाएं व विशेषणों के लिंग से होता है
                                                वाक्य स्तर पर विशेषण आधारित लिंग बोध
१- -ओ प्रत्यय से स्त्रीलिंग का बोध होता है – यथा
मैं कालो छूं (मै काला हूं ),
तैं बड़ो निको छै (तू बड़ा अच्छा है )
२- -इ प्रत्यय से स्त्रीलिंग का बोध होता है . जैसे
मैं कालि छूं (मै काली हूं )
तैं बड़ी निकि छै (तू बड़ी अच्छी है )
                                          वाक्य स्तर पर क्रिया आधारित लिंग बोध
क्रिया के अंत में जुड़े हुए पुल्लिंग या त्रिलिंग वोधक पर प्रत्ययों से सर्वनाम की लिंग निर्णय होता है .यथा
तैं खांछै (तू खता है )
तैं खांछि (तू खाती है )
वु खान्छ (वह खता है )
वु खान्छी (वह खाती है )
कुमाउंनी में उत्तम पुरुष सर्वनाम का लिंग बोध केवल विशेषण द्वारा सम्भव है क्योंकि उत्तम पुरुष में क्रिया लिंग समान पाए जाते हैं
                                        सर्वनाम वचन व कारक रूप
उत्तम पुरुष वाचक सर्वनाम
एक वचन——————————————- बहुवचन
अविकारी————विकारी ————————अविकारी ———-विकारी
मैं—————–मैं ——————————-हम्—————–हम्
म —————–मी———–—————————————–हमू, हमुन
मध्यम पुरुष वाचक सर्वनाम
———————- एक वचन ————————————————बहुवचन
———————– अविकारी ——–विकारी—————-——————अविकारी ——–विकारी
मध्य पुरुष वाचक ———————– ऐ ———————————————————– -उ
मध्य पुरुष वाचक————————इ ———————————————————— -इ
मध्य पुरुष वाचक————————ए-————————————————————-ऊन
मध्य पुरुष वाचक————————या —————————————————————-
मध्य पुरुष वाचक ———————-ऊँ—————————————-लोग—————लोगून, लोगन
मध्य पुरुष आदरसूचक— तैं ———–तैं—————-————————-तुम —————–तुम्
मध्य पुरुष आदरसूचक—तु ————-त्वी ————————————तिमि ——————तुमु
मध्य पुरुष आदरसूचक — ————-ते —————————————-तम——————–तिमि
मध्य पुरुष आदरसूचक—————-त्या————————————————————–तुमुन
मध्य पुरुष आदरसूचक—————–त्वे ——————————————————————
मध्य पुरुष आदरसूचक- आपूं———आपूं ————————————आपूं लोग ————-आपूं लोगुन/आपूं लोगन (आप कुमाउंनी शब्द नही है )
                                      अन्य पुरुष निश्चय वाचक सर्वनाम
—————————- एक वचन ————————————————बहुवचन

————————- –अविकारी ——–विकारी—————-——————अविकारी ——–विकारी
१- दूरवर्ती द्योत्तक— – उ —————वी ————————————— उन् ————–उन्, ऊन, उनु

२- निकटवर्ती द्योत्तक –वो—————ये——————————————इन —————इन, इन्, इनु, इनूं
आदर सूचक ————-आफु ————-आफु ————————————आफु—————-आफूं /आफून

आदर सूचक ————-आफ ————-आफ————————————-आफ—————- आफून /आफूँ
निश्चय वाचक सर्वनाम एक वचन में -ई , तथा बहुवचन में ऐ जुड़ता है. योई, (यही ) , उई (वही ) , इनै (ये ही ), उनै (वे ही )

                                  प्रश्न वाचक सर्वनाम
———————————– एक वचन ————————————————–बहुवचन

————————- –अविकारी ——–विकारी—————-——————अविकारी ——–विकारी
प्राणी वोधक —————को ————–कै —————————————-कन—————कन् , कनु , कनूं

अप्राणी वोधक————-के —————-के ———————————————————–कनूं (क+न् +उन )
                                    अनिश्चय वाचक सर्वनाम

———————————– एक वचन ————————————————–बहुवचन

————————- –अविकारी ——–विकारी—————-—————अविकारी ——–विकारी

प्राणी वोधक ————-कवी, कोई ——- के ————————————क्वे ———— कन , कनु कनूं
परिमाण वोधक———–कुछ ————-कुछ ———————————-कुछ ———कुछ, कुछून

परिमाण वाचक व
सम्पूर्णता द्योतक ——शब्—————शब् ————————————शब्————शबून
—————————-शप् ————-शप्————–————– ——– शप्———– शप्पैन

                                           सम्बन्ध वाचक सर्वनाम
———————————– एक वचन ————————————————–बहुवचन

————————- –अविकारी ——–विकारी—————-—————अविकारी ——–विकारी
सम्बन्ध वाचक ———-जो—————-जै ————————————–जन ————जनूं (जन + उन)

नित्य सम्बन्धी ———शो —————-तै ——————————————————-तनु , तिनु
नित्य सम्बन्धी———तो ———————————————————तन, तिन ——-तनु , तिनु , तिनूं

                                 परस्परता वोधक सर्वनाम
परस्परता वोधक सर्वनाम केवल बहुवचन में होते हैं
————————- –अविकारी ——–विकारी

परस्परता वोधक ——– आपश————आपशून
                                       निजवाचक वोधक सर्वनाम
———————————– एक वचन ————————————————–बहुवचन

————————- –अविकारी ——–विकारी—————-—————अविकारी ——–विकारी
————————–आपुन ————आपुना————-——————-आपुना ———–आपुनान

अविकारी कारक एकवचन व वहुवचन सर्वनाम
कुमाउंनी में अविकारी कारक एक वचन बहुवचन में परिवर्तित होता है . किन्तु दुसरे के अंतर्गत एक वचन और वहुवचन के रूप समान रहते हैं .

बहुवचन में परिवर्तन होने वाले सर्वनाम
वे जो एकवचन में स्वरांत होते हैं व बहुवचन में ब्यंजनांत हो जाते है – एक वचन क बहुवचन कक में, एकवचन अ बहुवचन अक में बदल जाता है. वैसे हम और हमि भी इसी कोटि में आते हैं जो smay, jati bhed के मुक्त परिवर्तन के उदाहरण

हम -उत्तम पुरुष बहुवचन द्योतक सर्वनाम है
तुम माध्यम पुरुष बहुवचन द्योतक है
———————————– एक वचन ————————————————–बहुवचन

———————————-उ (वह) ——————————————————–उन (वे)
———————————यो (यह) ——————————————————–इन (ये)

——————————–तो (सो)————————–——————————–तिन, तन
——————————-को—————————————————————-कन

———————————जो ————————————————————–जन
                                        कुछ अन्य नियमों के उदहारण
कुछ, शप, आफु
हम , हमुन

तुम , तुमन
उन , उनुन
इन , इनून
हमूनले (हमने ), हमून (हमको)
हमुंका (हमारा) , हमुश (हमको) , हमुकैं (हमको) , हमुकणि
आपुनान (अपनों को )
शबोका (सबका ) , शबाका (सबके) , शबकि (सबकी)

हमोरो, हमारा , हमरी , तुमोरो, तुमारा , तुमरी , इनोरो , इनारा, उनोरी , उनारा, उर्नार,
हम लोगून, हम शब्, हम शबुन , शब् जन, शब जनून
मेरवे (मेरा ही ) , तेर्वे (तेरा ही) , तुमी ((तुम ही) , मैंइ (मै ही ) , उनि (वे ही ) इनी (ये ही ) , हमई (हम ही ) , , उनीर्वे (उनका ही ) , इनौर्वे (इनका ही )
संदर्भ् :

१- अबोध बंधु बहुगुणा , १९६० , गढ़वाली व्याकरण की रूप रेखा, गढ़वाल साहित्य मंडल , दिल्ली
२- बाल कृष्ण बाल , स्ट्रक्चर ऑफ़ नेपाली ग्रैमर , मदन पुरूस्कार, पुस्तकालय , नेपाल

३- भवानी दत्त उप्रेती , १९७६, कुमाउंनी भाषा अध्ययन, कुमाउंनी समिति, इलाहाबाद
४- रजनी कुकरेती, २०१०, गढ़वाली भाषा का व्याकरण, विनसर पब्लिशिंग कं. देहरादून

५- कन्हयालाल डंड़रियाल , गढ़वाली शब्दकोश, २०११-२०१२ , शैलवाणी साप्ताहिक, कोटद्वार, में लम्बी लेखमाला
६- अरविन्द पुरोहित , बीना बेंजवाल , २००७, गढ़वाली -हिंदी शब्दकोश , विनसर प्रकाशन, देहरादून

७- श्री एम्’एस. मेहता (मेरा पहाड़ ) से बातचीत
८- श्रीमती हीरा देवी नयाल (पालूड़ी, बेलधार , अल्मोड़ा) , मुंबई से कुमाउंनी शब्दों के बारे में बातचीत

९- श्रीमती शकुंतला देवी , अछ्ब, पन्द्र-बीस क्षेत्र, , नेपाल, नेपाली भाषा सम्बन्धित पूछताछ
१० – भूपति ढकाल , १९८७ , नेपाली व्याकरण को संक्षिप्त दिग्दर्शन , रत्न पुस्तक , भण्डार, नेपाल

११- कृष्ण प्रसाद पराजुली , १९८४, राम्रो रचना , मीठो नेपाली, सहयोगी प्रेस, नेपाल
Comparative Study of Kumauni Grammar , Garhwali Grammar and Nepali Grammar (Grammar of , Mid Himalayan Languages ) to be continued ……..

. @ मध्य हिमालयी भाषा संरक्षण समिति
(Comparative Study of Grammar of Kumauni, Garhwali and Nepali, Mid Himalayan Languages-Part-5 )

सम्पादन : भीष्म कुकरेती

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