साहित्य

मध्य हिमालयी कुमाउंनी , गढ़वाली एवं नेपाली भाषा-व्याकरण का तुलनात्मक अध्ययन भाग -4

(इस लेखमाला का उद्देश्य मध्य हिमालयी कुमाउंनी, गढ़वाळी एवम नेपाली भाषाओँ के व्याकरण का शास्त्रीय पद्धति कृत अध्ययन नही है अपितु परदेश में बसे नेपालियों, कुमॉनियों व गढ़वालियों में अपनी भाषा के संरक्षण हेतु प्रेरित करना अधिक है. मैंने व्याकरण या व्याकरणीय शास्त्र का कक्षा बारहवीं तक को छोड़ कभी कोई औपचारिक शिक्षा ग्रहण नही की ना ही मेरा यह विषय/क्षेत्र रहा है. अत: यदि मेरे अध्ययन में शास्त्रीय त्रुटी मिले तो मुझे सूचित कर दीजियेगा जिससे मै उन त्रुटियों को समुचित ढंग से सुधार कर लूँगा. वास्तव में मैंने इस लेखमाला को अंग्रेजी में शुरू किया था किन्तु फिर अधिसंख्य पाठकों की दृष्टि से मुझे हिंदी में ही इस लेखमाला को लिखने का निश्चय करना पड़ा . आशा है यह लघु कदम मेरे उद्देश्य पूर्ति हेतु एक पहल माना जायेगा. मध्य हिमालय की सभी भाषाएँ ध्वन्यात्म्क हैं और कम्प्यूटर में प्रत्येक भाषा की विशिष्ठ लिपि न होने से कहीं कहीं सही अक्षर लिखने की दिक्कत अवश्य आती है किन्तु हम कुमाउंनी , गढवालियों व नेपालियों को इस परेशानी को दूसरे ढंग से सुलझानी होगी ना की फोकट की विद्वतापूर्ण बात कर नई लिपि बनाने पर फोकटिया बहस करनी चाहिए. —- भीष्म कुकरेती )

                                                                                                                                                                 
 नेपाली भाषा में संज्ञां विधान
                  
नेपाली में भी गढ़वाली, कुमाउंनी भाषाओँ की तरह ही संज्ञा बोध होता है . नेपाली में भी स्थान, व्यक्ति या दशा के नाम की अभिव्यक्ति को संज्ञा कहते हैं .

नेपाली संज्ञा प्रकार

नेपाली में संज्ञाएँ तीन तरह की होती हैं
व्यक्ति वाचक संज्ञाएँ :

किसी व्यक्ति, स्थान के विशेष नाम को व्यक्तिवाचक संज्ञा कहते हैं . जैसे
काठमांडु , जंग बहदुर सिंग , आदि

सामान्य वाचक संज्ञाएँ :
नेपाली व्याकरण विशेषग्य पराजुली के अनुसार जो संज्ञा ना तो व्यक्तिवाचक हो और ना ही भाव वाचक संज्ञा हो उसे सामान्य वाचक संज्ञा कहते हैं जैसे

कलम, घर फूल , मनिस (मनुष्य) आदि
भाववाचक संज्ञा :
भाव वाचक संज्ञाएँ किसी गुण, दशा या कृत्तव का नाम बताती हैं. जैसे

दया, केटोपन, भनाई, चाकरी, अग्लाई, नीलोपन आदि
नेपाली में भाव वाचक संज्ञा बनाने के सिद्धांत

१- जातिवाचक संज्ञा से भाव वाचक संज्ञा बनाने का विधान
जातिवाचक संज्ञा —————————————-भाव वाचक संज्ञा

केटो (बच्चा , लडका ) ————————————केटोपन ( बचपन,लड़कपन )
चाकर ——————————————————चाकरी

चोर ——————————————————–चोरी
२- मूल क्रिया से भाव वाचक संज्ञा बनाने का विधान

मूल क्रिया ———————————————–भाव वाचक संज्ञा
पढ़——————————————————-पढे (ढ पर ऐ की मात्रा ) (पढ़ाई )

भन (कहना )—————————–————–भनाऊ (कथन )
हांस————————–—————————हाँसाई ( हंसी )
– विशेषणों से भाववाचक संज्ञा बनाने के नियम
विशेषण ———————————————–भाव वाचक संज्ञा

नौलो————————–—————————नौलोपन (नयापन)
रातो —————————————————-रातोपन (ललाई )

अग्लो ————————————————-अग्लाई (उंचाई )
नेपाली भाषा में लिंग विधान

नेपाली व्याकरणाचार्यों जैसे पराजुली के मतानुसार नेपाली में चार प्रकार के लिंग पाए जाते हैं.

१- पुल्लिंग

२- स्त्रीलिंग
३- नपुसंक लिंग ; अप्रानी वाचक पदार्थ, भाव, विचार नपुंसक लिंग में आते हैं यथा:
घर, पुस्तक, रुख, विचार आदि
कवि, कीरा (कीड़ा) , चरा (चिड़िया) , देवता आदि
३- सामान्य लिंग : जिस किसी में दोनों लिंगों की संभावनाएं होती है . यथा

जब कि व्याकरण शास्त्री जय राज आचार्य मानते हैं कि दो ही लिंग होते हैं .

जय आचार्य के अनुसार संज्ञा में लिंग क्रिया अनुसार अभिव्यक्त होता है णा कि संज्ञा से , जैसे
शारदा जान्छा (शारदा जाता है )

शारदा जान्छे (शारदा जाती है )
दुर्गा गयो (दुर्गा गया )
दुर्गा गई (दुर्गा गई)

१- शब्द से पहले लिंग सूचक शब्द जोड़ने से
पुल्लिंग —————————————स्त्रीलिंग

लोग्ने मान्छे———————————स्वास्नी मान्छे
पुरुष देवता ———————————-स्त्री देवता

भाले कमिला————————-——पोथी कमिला (चींटी )
२- आनी, इनी, इ, एनी प्रत्यय लगाकर पुल्लिंग से स्त्रीलिंग बदलना

पुल्लिंग —————————————स्त्रीलिंग
ऊँट ——————————————–ऊंटनी
कुकुर —————————————–कुकुर्नी (कुत्ती )

घर्ती————————-—————-घर्तीनि
डाक्टर ————————————–डाक्टरनी

३- नेपाली के पृथक पृथक पुल्लिंग व स्त्रीलिंग शब्द
नेपाली में भी अन्य भाषाओँ कि तरह पृथक पुल्लिंग शब्द व पृथक स्त्रीलिंग का विधान मिलता है

पुल्लिंग —————————————स्त्रीलिंग
बुवा (पिता) ———————————-आमा (मां )
दाजू (भाई)————————-———-बहिनी (बहिन)

सांढे गोरु (बैल) ———————————–गाई (गाय)
नेपाली में वचन विधान

नेपाली में गढ़वाली व कुमाउंनी भाषाओँ के बनिस्पत वचन विधान सरल है
१- हरु प्रत्यय जोड़ कर बहुवचन बनना :

संज्ञा के अंत में हरु जोड़ने से संज्ञा बहुवचन हो जात है , जैसे
एकवचन —————————————बहुवचन

राजा ——————————————-राजाहरू
मान्छे (एक व्यक्ति ) ————————- मान्छेहरु (कई व्यक्ति )

किताब —————————————–किताबहरु
देस ———————————————-देसहरू
२- सूचनार्थ शब्दों से वचन सूचना

यो एवम त्यो ‘यी’ और ‘ती’ में बदल जाते हैं
एकवचन —————————————बहुवचन
यो मान्छे —————————————यी मान्छेहरु

३- संख्या को संज्ञा से पहले लगाने से वचन बादल जाता है
एकवचन —————————————बहुवचन

एक दिन —————————————-दुई दिन , पांच दिन
४- कुछ संज्ञाओं में संज्ञा शब्द (जो जाती वाचक संज्ञाएँ बहुत सा, बहुत से बिबोधित हो पाती हैं ) से पहले धेरै लगाने से भी एकवचन बहुवचन बन जाता है

एकवचन —————————————बहुवचन
किताब —————————————-धेरै किताब
यद्यपि धेरै किताबहरु भी प्रयोग किया जाता है

५- कारक को शब्द बहुवचन में का में बदल जाता है
एकवचन —————————————बहुवचन
नेवार को मान्छे —————————–नेवार का मान्छेहरु (नेवार के (कई) मनुष्य )

छोरा को किताब —————————–छोरा का किताबहरु (पुत्र की किताबें )

संदर्भ् :

१- अबोध बंधु बहुगुणा , १९६० , गढ़वाली व्याकरण की रूप रेखा, गढ़वाल साहित्य मंडल , दिल्ली
२- बाल कृष्ण बाल , स्ट्रक्चर ऑफ़ नेपाली ग्रैमर , मदन पुरूस्कार, पुस्तकालय , नेपाल

३- भवानी दत्त उप्रेती , १९७६, कुमाउंनी भाषा अध्ययन, कुमाउंनी समिति, इलाहाबाद
४- रजनी कुकरेती, २०१०, गढ़वाली भाषा का व्याकरण, विनसर पब्लिशिंग कं. देहरादून

५- कन्हयालाल डंड़रियाल , गढ़वाली शब्दकोश, २०११-२०१२ , शैलवाणी साप्ताहिक, कोटद्वार, में लम्बी लेखमाला
६- अरविन्द पुरोहित , बीना बेंजवाल , २००७, गढ़वाली -हिंदी शब्दकोश , विनसर प्रकाशन, देहरादून

७- श्री एम्’एस. मेहता (मेरा पहाड़ ) से बातचीत
८- श्रीमती हीरा देवी नयाल (पालूड़ी, बेलधार , अल्मोड़ा) , मुंबई से कुमाउंनी शब्दों के बारे में बातचीत

९- श्रीमती शकुंतला देवी , अछ्ब, पन्द्र-बीस क्षेत्र, , नेपाल, नेपाली भाषा सम्बन्धित पूछताछ
१० – भूपति ढकाल , १९८७ , नेपाली व्याकरण को संक्षिप्त दिग्दर्शन , रत्न पुस्तक , भण्डार, नेपाल

११- कृष्ण प्रसाद पराजुली , १९८४, राम्रो रचना , मीठो नेपाली, सहयोगी प्रेस, नेपाल

( Comparative Study of Grammar of Kumauni, Garhwali and Nepali, Mid Himalayan Languages-Part-4 )

@ मध्य हिमालयी भाषा संरक्षण समिति



सम्पादन : भीष्म कुकरेती

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