गढवाली भाषा में पुस्तक समीक्षायें
ऐसा लगता है कि गढवाली भाषा की पुस्तकों की समीक्षा/समालोचना सं. 1985 तक बिलकुल ही नही था, कारण गढवाली भाषा में पत्र-पत्रिकाओं का ना होना. यही कारण है कि अबोधबंधु बहुगुणा ने ‘गाड म्यटेकि गंगा (1975) व डा अनिल डबराल ने ‘गढवाली गद्य की परम्परा : इतिहास से आज तक’ (2007) में 1990 तक के गद्य इतिहास में दोनों विद्वानों ने समालोचना को कहीं भी स्थान नहीं दिया. इस लेख के लेखक ने धाद के सर्वेसर्वा लोकेश नवानी को भी सम्पर्क किया तो लोकेश ने कहा कि धाद प्रकाशन समय (1990 तक) में भी गढवाली भाषा में पुस्तक समीक्षा का जन्म नहीं हुआ था. (सम्पर्क 4 दिसम्बर 2001, साँय 18:42)
भीष्म कुकरेती की ‘बाजूबंद काव्य (मालचंद रमोला) पर समीक्षा गढ़ऐना (फरवरी 1990) में प्रकाशित हुयी तो भीष्म कुकरेती द्वारा पुस्तक में कीमत न होने पर समीक्षा में/व्यंग्य चित्र में फोकटिया गढवाली पाठकों की मजाक उड़ाने पर अबोधबंधु बहुगुणा ने सख्त शब्दों में ऐतराज जताया (देखे गढ़ ऐना 27 अप्रि, 1990, 22 मई 1990 अथवा एक कौंळी किरण, 2000). जब की मालचन्द्र रमोला ने लिखा की भीष्म की यह टिपणी सरासर सच्च है.
भीष्म कुकरेती ने गढ़ ऐना (1990) में ही जग्गू नौडियाल की ‘समळौण’ काव्य संग्रह व प्रताप शिखर के कथा संग्रह ‘कुरेडी फटगे’ की भी समीक्षा की गयी.
भीष्म कुकरेती ने ‘इनमा कनक्वै आण वसंत’ की समीक्षा (खबरसार2006) के अंक में की. जिसमे भीष्म ने डा. वीरेन्द्र पंवार के कविताओं को होते परिवर्तनों की दृष्टि से टटोला.
भीष्म कुकरेती की ‘पूरण पंत के काव्य संग्रह ‘अपणयास का जलड़ा’ की समालोचना; गढवाली धाई (2005) में प्रकाशित हुयी.
दस सालै खबरसार (2009) की भीष्म कुकरेती द्वारा अंग्रेजी में समीक्षा का गढवाली अनुबाद खबरसार (2009) में मुखपृष्ठ पर प्रकाशित हुआ.
गढवाली पत्रिका चिट्ठी पतरी में प्रकाशित समीक्षाएं
चिट्ठी पतरी के पुराने रूप ‘चिट्ठी’ (1989) में कन्हैयालाल ढौंडियाल के काव्य संग्रह ‘कुएड़ी’ की समीक्षा निरंजन सुयाल ने की.
बेदी मा का बचन (क.सं. महेश तिवाड़ी) की समीक्षा देवेन्द्र जोशी ने कई कोणों से की (चिट्ठी पतरी 1998).
प्रीतम अपच्छ्याण की ‘शैलोदय’ की समीक्षा चिट्ठी पतरी (1999) में प्रकशित हुयी और समीक्षा साक्ष्य है कि प्रीतम में प्रभावी समीक्षक के सभी गुण है.
देवेन्द्र जोशी की ‘मेरी अग्याळ’ कविता संग्रह (चट्ठी पतरी 2001 ) समालोचना एक प्रमाण है कि क्यों देवेन्द्र जोशी को गढवाली समालोचनाकारों की अग्रिम श्रेणी में रखा जाता है.
अरुण खुगसाल ने नाटक “आस औला” की समालोचना बड़े ही विवेक से चिट्ठी पतरी (2001) में की व नाटक के कई पक्षों की पड़ताल की.
आवाज (हिंदी-गढवाली कविताएँ स. धनेश कोठारी) की समीक्षा संजय सुंदरियाल ने चिट्ठी पतरी (2002) में निष्पक्ष ढंग से की.
हिंदी पुस्तक ‘बीसवीं शती का रिखणीखाळ’ के समालोचना डा यशवंत कटोच ने बड़े मनोयोग से चिट्ठी पतरी (2002) में की और पुस्तक की उपादेयता को सामने लाने में समालोचक कामयाब हुआ.
आँदी साँस जांदी साँस (क.स मदन डुकल़ाण ) की चिट्ठी पतरी (2002 ) में समीक्षा भ.प्र. नौटियाल ने की.
उकताट (काव्य, हरेश जुयाल) की विचारोत्तेजक समीक्षा देवेन्द्र पसाद जोशी ने चिट्ठी पतरी (2002) में प्रकाशित की.
हर्बि हर्बि (काव्य स. मधुसुदन थपलियाल) की भ. प्र. नौटियाल द्वारा चिट्ठी पतरी (2003) में प्रकाशित हुयी.
गैणि का नौ पर (उप. हर्ष पर्वतीय) की समीक्षा चिठ्ठी पतरी (2004) में छपी. समीक्षा में देवेन्द्र जोशी ने उपन्यास के लक्षणों के सिद्धान्तों के तहत समीक्षा के अन्ज्वाळ (कन्हैया लाल डंडरियाल) की भ.प्र. नौटियाल ने द्वारा समीक्षा ‘चिट्ठी पतरी (2004 ) में प्रकाशित हुई.
डा. नन्द किशोर ढौंडियाल द्वारा की गयी पुस्तक समीक्षाएं
डा नन्द किशोर का गढवाली, हिंदी पुस्तकों के समीक्षा में महान योगदान है. डा ढौंडियाल की परख शाश्त्रीय सिद्धांतों पर आधारित, न्यायोचित व तर्क संगत होती है. डा ढौंडियाल की समीक्षाओं का ब्योरा इस प्रकार है
‘कांति’ – खबरसार (2001)
‘समर्पित दुर्गा’ – खबरसार (2001 )
‘कामनिधी’ खबरसार (2001)
रंग दो – खबरसार (2002 )
‘उकताट’- खबरसार (2002)
‘हर्बि-हर्बि’ खबरसार (2002)
‘तर्पण’ खबरसार (2003)
पहाड़ बदल रयो – खबरसार (2003)
‘धीत’ – खबरसार (2003)
‘बिज़ी ग्याई कविता’ – खबरसार (2004)
गढवाली कविता’ – खबरसार (2005)
‘शैल सागर’ – खबरसार (2006)
‘टळक मथि ढळक’- खबरसार (2006)
‘संकवाळ ‘ की समीक्षा – खबरसार (2010)
‘दीवा दैण ह्वेन’ – खबरसार (2010)
‘आस’ – खबरसार (2010)
ग्वे – खबरसार (2010)
उमाळ – खबरसार (2010)
‘प्रधान ज्योर’ – खबरसार (2010)
पाणी – खबरसार (2011)
क्रमश:–
द्वारा- भीष्म कुकरेती