पूर्व – आधुनिक काल
गढवाली साहित्य का आधुनिक काल 1850 ई. से शुरू होता है। किन्तु आधुनिक रूप में कविताएँ पूर्व में भी रची जाती रही हैं। हाँ उनका लेखाजोखा कालग्रसित हो गया है। किन्तु कुछ काव्य का रिकॉर्ड मिलता है।
तेरहवीं सदी में रचित काशिराज जयचंद कि कविता का रिकॉर्ड बताता है कि, कविताएँ गढवाल में विद्यमान थीं। डा. हरिदत्त भट्ट ’शैलेश’, भजनसिंह सिंह, मोहनलाल बाबुलकर, अबोधबंधु बहुगुणा, चक्रधर बहुगुणा एवं शम्भुप्रसाद बहुगुणा आदि अन्वेषकों ने उन्नीसवीं सदी से पहले उपलब्ध (रेकॉर्डेड) साहित्य के बारे में पूर्ण जानकारी दी है।
अट्ठारहवीं सदी कि कविता जैसे ‘मांगळ’ गोबिंद फुलारी’ घुर्बन्शी’ घोड़ी’ पक्षी संघार (1750 ई. से पहले) जैसी कविताएँ अपने कवित्व पक्ष कि उच्चता और गढवाली जनजीवन कि झलक दर्शाती हैं। गढवाल के महारजा सुदर्शनशाह कृत सभासार (1828) यद्यपि ब्रज भाषा में है। किन्तु प्रत्येक कविता का सार गढवाली कविता में है।
इसी तरह दुनिया में एकमात्र कवि जिसने पांच भाषाओँ में कविताएँ (संस्कृत, गढवाली, कुमाउनी, नेपाली और खड़ीबोली) रचीं और एक अनोखा प्रयोग भी किया कि, दो भाषाओँ को एक ही कविता में लाना याने एक पद एक भाषा का और दूसरा पद दूसरी भाषा का. ऐसे कवि थे गुमानी पन्त (1780-1840)
@ Bhishma Kukreti