गढ़वाली-कविता
डाळी जग्वाळी (गढ़वाली कविता)
हे भैजी यूं डाळ्यों
अंगुक्वैकि समाळी
बुसेण कटेण न दे
राखि जग्वाली
आस अर पराण छन
हरेक च प्यारी
अन्न पाणि भूक-तीस मा
देंदिन् बिचारी
जड़ कटेलि यूं कि
त दुन्या क्य खाली………..,
कन भलि लगली धर्ति
सोच जरा सजैकि
डांडी कांठी डोखरी पुंगड़्यों
मा हर्याळी छैकि
बड़ी भग्यान भागवान
बाळी छन लठयाळी……….,
बाटौं घाटौं रोप
कखि अरोंगु नि राखि
ठंगर्यावू न तेरि पंवाण
जुगत कै राखि
भोळ् का इतिहास मा
तेरा गीत ई सुणाली………॥
Source : Jyundal (A Collection of Garhwali Poems)
Copyright@ Dhanesh Kothari