गढ़वाली-कविता

पण… (गढ़वाली कविता)

ग्वथनी का गौं मा बल
सुबेर त होंदी च/ पण
पाळु नि उबौन्दु

ग्वथनी का गौं मा बल
घाम त औंद च/ पण
ठिंणी नि जांदी

ग्वथनी का गौं मा बल
मंगारु त पगळ्यूं च/ पण
तीस नि हबरान्दी

ग्वथनी का गौं मा बल
उंदार त सौंगि च/ पण
स्या उकाळ नि चड़्येन्दी

ग्वथनी का गौं मा बल
ब्याळी बसायत च/ पण
आज-भोळ नि रैंद

ग्वथनी का गौं मा बल
सतीर काळी ह्‍वईं छन/ पण
चुलखान्दौं आग नि होंद

ग्वथनी का गौं मा बल
दौ-मौ नि बिसर्दू बाद्‍दी/ पण
बादिण हुंगरा नि लांदी

ग्वथनी का गौं मा बल
इस्कुलै चिणैं त ह्‍वईं च/ पण
बाराखड़ी लुकि जांदी

ग्वथनी का गौं मा बल
स्याळ त गुणि माथमि दिखेंदा/ पण
रज्जा जोगी जोगड़ा ह्‍वेजांदा

ग्वथनी का गौं मा बल
सौब धाणि त च/ पण
कुछ कत्त नि चितेंद।

Source : Jyundal (A Collection of Garhwali Poems)
Copyright@ Dhanesh Kothari

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button