गढ़वाली-कविता
हमर गौंम (गढ़वाली कविता)
केशव डुबर्याळ ‘मैती’//
हमर गौंम,
आइडिया नेटभर्क च,
गोर, बछरू, भ्याल हकै,
मनखि निझर्क च।
हमर गौंम,
पीडब्ल्डी सड़क च,
मनखि भितर सियुं,
भैर बांदर बेधड़क च।
हमर गौंम,
ऊर्जा निगमै बिजलि च,
भैर मनखि उज्यळु,
भितर अंध्यरु च।
हमर गौंम,
सरकरि प्राथमिक इस्कोल च,
नाति पढ़णौ प्रावेट इस्कोल,
बाजार भेज्यूं च।
हमर गौंम,
जल संस्थान कू पाणि च,
बस भौत ह्वेगि यिख,
अब देरादूनै स्याणि च।