गढ़वाली-कविता
भैजी !!
कंप्यूटर पर न खुज्यावा पहाड़ थैं
पहाड़ ऐकि देखिल्यावा पहाड़ थैं
सुबेर ह्वेगे, कविलासूं बटि गुठ्यार तक
खगटाणिन् तब्बि दंतुड़ी, बतावा धौं पहाड़ थैं
कुम्भ नह्येगेन करोंड़ूं, वारु-न्यारु अरबूं कू ह्वेगे
खिलकौं पर चलकैस नि ऐ, समझावा धौं पहाड़ थैं
ब्याळी-आज अर भोळ, आण-जाण त लग्यूं रैंण
रौण-बसण कू भरोसू बि, दे द्यावा धौं पहाड़ थैं
मेरा सट्ट्यों तुम तब ह्वेल्या त्, जम्मै नि होयांन्
जब चौरास मा पसरी, घाम तपदु देखिल्या पहाड़ थैं
Copyright@ Dhanesh Kothari