गढ़वाली-कविता
घौर औणू छौं (गढवाली कविता)
उत्तराखण्ड जग्वाळ रै मैं घौर औणू छौं
परदेस मा अबारि बि मि त्वे समळौणू छौं
दनकी कि ऐगे छौ मि त सुबेर ल्हेक
आसरा खुणि रातभर मि डबड्यौणूं छौं
र्वे बि होलू कब्बि ब्वैळ् मि बुथ्याई तब
खुचलि फरैं कि एक निंद कू खुदेणू छौं
छमोटों बटि खत्ये जांद छौ कत्ति दां उलार
मनखि-मनखि मा मनख्यात ख्वज्यौणू छौं
बारा बीसी खार मा कोठार लकदक होंदन्
बारा बन्नि टरक्वैस् मा आमदनी पूर्योणू छौं
Copyright@ Dhanesh Kothari