इतिहास

गढ़वाल की राजपूत जातियों का इतिहास (भाग-1)

संकलनकर्ता- नवीन चंद्र नौटियाल //

उत्तराखंड राज्य के गढ़वाल क्षेत्र में निवास करने वाली राजपूत जातियों का इतिहास भी काफी विस्तृत है। यहां बसी राजपूत जातियों के भी देश के विभिन्न हिस्सों से आने का इतिहास मिलता है। इसी से जुड़ी कुछ जानकारियां आपसे साझा की जा रही हें।

क्षत्रिय/ राजपूत :- गढ़वाल में राजपूतों के मध्य निम्नलिखित विभाजन देखने को मिलते हैं –
1. परमार (पंवार) :- परमार/ पंवार जाति के लोग गढ़वाल में धार गुजरात से संवत 945 में आए। इनका प्रथम निवास गढ़वाल राजवंश में हुआ।

2. कुंवर :- इन्हें पंवार वंश की ही उपशाखा माना जाता है। ये भी गढ़वाल में धार गुजरात से संवत 945 में आए। इनका प्रथम निवास भी गढ़वाल राजवंश में हुआ।

3. रौतेला :-  रौतेला जाति को भी पंवार वंश की उपशाखा माना जाता है।

4. असवाल :- असवाल जाति के लोगों का सम्बंध नागवंश से माना जाता है। ये दिल्ली के समीप रणथम्भौर से संवत 945 में यहां आए। कुछ विद्वान इनको चौहान कहते हैं। अश्वारोही होने से ये असवाल कहलाए। वैसे इन्हें गढ़वाल में थोकदार माना जाता है।

5. बर्त्वाल :- बर्त्वाल जाति के लोगों को पंवार वंश का वंशज माना जाता है। ये संवत 945 में उज्जैन/ धारा से गढ़वाल आए और बड़ेत गांव में बस गए।

6. मंद्रवाल (मनुराल) :- ये कत्यूरी वंश के राजपूत हैं। ये संवत 1711 में कुमाऊं से गढ़वाल में आकर बसे। इनको कुमाऊं के कैंत्यूरा जाति के राजाओं की सन्तति माना जाता है।

7. रजवार :- कत्यूरी वंश के वंशज रजवार जाति के लोग संवत 1711 में कुमाऊं से गढ़वाल आए थे।

8. चन्द :- ये सम्वत 1613 में गढ़वाल आए। ये कुमाऊं के चन्द राजाओं की संतानों में से एक मानी जाती हैं।

9. रमोला :- ये चौहान वंश के वंशज हैं जो संवत 254 में मैनपुरी, उत्तर प्रदेश से गढ़वाल में आए और रमोली गांव में रहने के कारण ये रमोला कहलाए। इन्हें पुरानी ठाकुरी सरदारों की संतान माना जाता है।

10. चौहान :- ये चौहान वंश के वंशज मैनपुरी से यहां आए। इनका गढ़ ऊप्पू गढ़ माना जाता था।

11. मियां :- ये सुकेत और जम्मू से गढ़वाल में आए। ये यहां के मूल निवासी नहीं थे। लेकिन ये गढ़वाल के साथ नातेदारी होने के कारण गढ़वाल में आए।

गढ़वाल में राजपूत जातियों में बिष्ट, रावत, भण्डारी, नेगी, गुसाईं आदि प्रमुख समूह हैं, जिनके अंतर्गत कई जातियां समाहित हैं।

रावत जाति के राजपूत :- गढ़वाल में रावत जाति राजपूतों की एक प्रमुख जाति मानी जाती है। इसके अतर्गत कई जातियां समाहित हैं। ये सभी रावत जातियां अलग-अलग स्थानों से आकर गढ़वाल में बसी हैं।

12. दिकोला रावत :- दिकोला रावत की पूर्व जाति (वंश) मरहठा है। ये महाराष्ट्र से संवत 415 में गढ़वाल में आए और दिकोली गांव को अपना बनाया।

13. गोर्ला रावत :- गोर्ला रावत पंवार वंश के वंशज हैं जो गुजरात से संवत 817 में गढ़वाल आए। गोर्ला रावत का प्रथम गांव गुराड़ माना जाता है।

14. रिंगवाड़ा रावत :- इन्हें कैंत्यूरा वंश का वंशज माना जाता है। जो कुमाऊं से संवत 1411 में गढ़वाल आए। इनका प्रथम गढ़ रिंगवाड़ी गांव माना जाता था।

15. बंगारी रावत :- बंगारी रावत बांगर से संवत 1662 में गढ़वाल आए। बांगरी का अपभ्रंश बंगारी माना जाता है।

16. बुटोला रावत :- ये तंअर वंश के वंशज हैं। ये दिल्ली से संवत 800 में गढ़वाल आए। इनके मूलपुरुष बूटा सिंह माने जाते हैं।

17. बरवाणी रावत :- ये तंअर वंश के वंशज मासीगढ़ से संवत 1479 में आए। इनका गढ़वाल में प्रथम  निवास नैर्भणा क्षत्रिय था।

18. जयाड़ा रावत :- ये दिल्ली के समीप किसी अज्ञात स्थान से गढ़वाल में आए। गढ़वाल में इनका प्रथम गढ़ जयाड़गढ़ माना जाता था।

19. मन्यारी रावत :- इनके मूल स्थान के बारे में विस्तृत जानकारी उपलब्ध नहीं है। ये लोग गढ़वाल की मन्यारस्यूं पट्टी में बसने के कारण मन्यारी रावत कहलाए।

20. जवाड़ी रावत :- इनका प्रथम गांव जवाड़ी गांव माना जाता है।

21. परसारा रावत :- ये चौहान वंश के वंशज हैं जो संवत 1102 में ज्वालापुर से आकर सर्वप्रथम गढ़वाल के परसारी गांव में आकर बसे।

22. फरस्वाण रावत :- मथुरा के समीप किसी स्थान से ये संवत 432 में गढ़वाल आए। इनका प्रथम गांव गढ़वाल का फरासू गांव माना जाता है।

23. मौंदाड़ा रावत :- ये पंवार वंश के वंशज हैं जो संवत 1405 में गढ़वाल में आकर बसे। इनका प्रथम गांव मौंदाड़ी गांव माना जाता है।

24. कयाड़ा रावत :- इन्हें पंवार वंश का वंशज माना जाता है। ये संवत 1453 में गढ़वाल आए।

25. गविणा रावत :- इन्हें भी पंवार वंश का वंशज माना जाता है। गवनीगढ़ इनका प्रथम गढ़ था।

26. लुतड़ा रावत :- ये चौहान वंश के वंशज हैं जो संवत 838 में लोहा चांदपुर से गढ़वाल आए। इनमें पुराने राजपूत ठाकुर आशा रावत और बाशा रावत थोकदार कहलाते थे।

27. कठेला रावत :- कठेला रावत राजपूत जाति के बारे में पंडित हरिकृष्ण रतूड़ी जी लिखते हैं कि “इनका मूल वंश कठौच/कटौच और गोत्र काश्यप है और ये कांगड़ा से गढ़वाल में आकर बसे हैं। ऐसा माना जाता है कि इनका गढ़वाल राजवंश से रक्त सम्बंध रहा है। इनकी थात की पट्टी गढ़वाल में कठूलस्यूं मानी जाती है। कुमाऊं के कठेला थोकदारों के गांव देवाइल में भी ‘कठेलागढ़’ था।”

28. तेरला रावत :- ये गुजड़ू पट्टी के थोकदार माने जाते हैं।

29. मवाल रावत :- गढ़वाल में इनकी थात की पट्टी मवालस्यूं मानी जाती है। इनका मूल निवास नेपाल तथा ये कुंवर वंश के माने जाते हैं।

30. दूधाधारी रावत :- ये बिनोली गांव, चांदपुर के निवासी माने जाते हैं।

31. मसोल्या रावत :- पंवार पूर्व जाति के वंशज मसोल्या रावत धार के मूल निवासी हैं जो गढ़वाल में बसे हैं।

इसके अलावा जेठा रावत, तोदड़ा रावत, कड़वाल रावत, तुलसा रावत, मौरोड़ा रावत, गुराडी रावत, कोल्ला रावत, घंडियाली रावत, फर्सुड़ा रावत, झिंक्वाण रावत, मनेसा रावत, कफोला रावत जातियों के बारे में अभी जानकारी प्राप्त नहीं हो सकी है।

बिष्ट जाति के राजपूत :- गढ़वाल में बिष्ट जाति राजपूतों में गिनी जाती है, इसके अंतर्गत कई अन्य उपजातियां/ उपसमूह आते हैं जो यह प्रदर्शित करते हैं कि बिष्ट जाति किसी एक समूह से नहीं बल्कि कई अन्य जातियों से मिलकर बनी है। ये सभी जातियां कई वर्ष पूर्व अलग-अलग स्थानों से आयी और गढ़वाल में बस गयी।

32. बगड़वाल बिष्ट :- बगड़वाल बिष्ट जाति के लोग सिरमौर, हिमाचल से संवत 1519 में गढ़वाल आए और तत्पश्चात यहीं के निवासी हो गए। इनका प्रथम गढ़ बगोडी/ बगोड़ी गांव माना जाता है।

33. कफोला बिष्ट :- ये लोग यदुवंशी लोगों के वंशज माने जाते हैं, जो इतिहास में कम्पीला नामक स्थान से गढ़वाल में आए और फिर यहीं के मूल निवासी हो गए। इनकी थात पौड़ी गढ़वाल जिले की कफोलस्यूं पट्टी मानी जाती है।

34. चमोला बिष्ट :- पंवार वंशी चमोला बिष्ट जाति के लोग उज्जैन से संवत 1443 में गढ़वाल में आए। गढ़वाल के चमोली क्षेत्र में बसने के कारण ये चमोला बिष्ट कहलाए।

35. इड़वाल बिष्ट :- इन्हें परिहार वंशी माना जाता हैं। ये कि दिल्ली के नजदीक किसी अज्ञात स्थान से संवत 913 में गढ़वाल में आए और ईड़ गांव के निवासी होने के कारण इस नाम से प्रसिद्ध हुए।

36. संगेला/संगला बिष्ट :- संगेला/संगला बिष्ट जाति के लोग गुजरात क्षेत्र से संवत 1400 में गढ़वाल में आए।
37. मुलाणी बिष्ट :- मुलाणी बिष्ट लोगों को कैंत्यूरा वंश का वंशज माना जाता है। ये कुमाऊं क्षेत्र से संवत 1403 में गढ़वाल आए और मुलाणी गांव में बस गए।

38. धम्मादा बिष्ट :- ये चौहान वंश से सम्बंधित हैं। ये दिल्ली के मूल निवासी थे जो कि गढ़वाल में बस गए।

39. पडियार बिष्ट :- ये परिहार वंश के वंशज माने जाते हैं। ये धार क्षेत्र से संवत 1300 में गढ़वाल में आए।

40. साबलिया बिष्ट :- ये सूर्यवंशी वंश के वंशज और उपमन्यु गोत्र के लोग हैं कत्यूरियों की संतान माने जाते हैं। ये पहले उज्जैन से गढ़वाल की साबली पट्टी में आये और उसके बाद कुमाऊं गए। इसके अलावा तिल्ला बिष्ट, बछवाण बिष्ट, भरेला बिष्ट, हीत बिष्ट, सीला बिष्ट के बारे में जानकारी उपलब्ध नहीं हो सकी है।

भण्डारी जाति के राजपूत :- भण्डारी जाति के लोगों को राजपूत जाति के अधीन रखा जाता है।

41. काला भंडारी :- ये काली कुमाऊं के मूल निवासी माने जाते हैं।

42. पुंडीर भंडारी :- पुण्डीर वंशीय भण्डारी जाति के लोग मायापुर के मूल निवासी थे जो संवत 1700 में गढ़वाल आए।
इसके अतिरिक्त तेल भंडारी और सोन भंडारी के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली है।

नेगी जाति के राजपूत :-

43. पुण्डीर नेगी :- पुण्डीर नेगी संवत 1722 में सहारनपुर से आकर गढ़वाल में बसे। रतूड़ी जी के अनुसार, पृथ्वीराज रासो में ये दिल्ली के समीप के होने कहे गए हैं।

44. बगलाणा नेगी :- बगलाणा नेगी बागल क्षेत्र से संवत 1703 में गढ़वाल आए। इनका मुख्य गांव शूला माना जाता है।

45. खूंटी नेगी :- ये संवत 1113 में नगरकोट-कांगड़ा, हिमाचल से आकर गढ़वाल में बसे। गढ़वाल में इनका प्रथम गांव खूंटी गांव है।

46. सिपाही नेगी :- सिपाही नेगी संवत 1743 में नगरकोट-कांगड़ा, हिमाचल से गढ़वाल में आए। सिपाहियों में भारती होने से इनका नाम सिपाही नेगी पड़ा।

47. संगेला नेगी :- ये जाट राजपूत जाति के वंशज हैं। ये संवत 1769 में सहारनपुर से आकर गढ़वाल में बसे। संगीन रखने से ये संगेला नेगी कहलाए।

48. खड़खोला नेगी :- ये कैंत्यूरा जाति के वंशज मने जाते हैं। ये कुमाऊं से संवत 1169 में गढ़वाल आए यहां के खड़खोली नामक गांव में कलवाड़ी के थोकदार रहे। इसीलिए खड़खोली नाम से प्रचलित हुए।

49. सौंद नेगी :- इनकी पूर्व जाति (वंश) राणा है। ये गढ़वाल में कैलाखुरी से आए और गढ़वाल के सौंदाड़ी गांव में बसने के कारण सौंद नेगी के नाम से जाने गए।

50. भोटिया नेगी :- ये हूण राजपूत जाति के वंशज हैं जो हूण देश से आकर गढ़वाल में बसे।

51. पटूड़ा नेगी :- पटूड़ी गांव में बसने के कारण ये पटूड़ा नेगी कहलाए।

52. महरा/ म्वारा/ महर नेगी :- इनकी पूर्व जाति (वंश) गुर्जर राजपूत है। ये लंढौरा स्थान से आकर गढ़वाल में बसे।

53. बागड़ी/ बागुड़ी नेगी :- ये संवत 1417 में मायापुर स्थान से आकर गढ़वाल में बसे। बागड़ नामक स्थान से आने के कारण ये बागड़ी/ बागुड़ी नेगी कहलाए।

54. सिंह नेगी :- बेदी पूर्व जाति से सम्बद्ध सिंह नेगी  संवत 1700 में पंजाब से आकर गढ़वाल में बसे।

55. जम्बाल नेगी :- ये जम्मू से आकर गढ़वाल में बसे हैं।

56. रिखल्या/ रिखोला नेगी :- रिखल्या/ रिखोला राजपूत नेगी डोटी, नेपाल के रीखली गर्खा से आए और छंदों के आश्रय में रहे। रीखली गर्खा से आने के कारण ही इनका नाम रिखल्या/ रिखोला नेगी पड़ा।

57. पडियार नेगी :- ये परिहार वंश के वंशज है। जो संवत 1860 में दिल्ली के समीप से गढ़वाल में आए।

58. लोहवान नेगी :- इनकी पूर्व जाति (वंश) चौहान है। ये संवत 1035 में दिल्ली से आकर गढ़वाल के लोहबा परगने में बसे और यहीं के निवासी हो गए।

59. गगवाड़ी नेगी :- गगवाड़ी नेगी जाति के लोग संवत 1476 में मथुरा के समीप के क्षेत्र से आकर गढ़वाल के गगवाड़ी गांव में बसे।

60. चोपड़िया नेगी :- ये लोग संवत 1442 में हस्तिनापुर से आकर गढ़वाल के चोपड़ा गांव में बसे।

61. सरवाल नेगी :- सरवाल नेगी जाति के लोग संवत 1600 में पंजाब से आकर गढ़वाल में बसे।

62. घरकण्डयाल नेगी :- ये पांग, घुड़दौड़स्यूं के निवासी माने जाते हैं।

63. कुमयां नेगी :- ये कुमैं, काण्डा आदि गांवों में निवास करते हैं।

64. भाणा नेगी :- ये पटना के मूल निवासी हैं।

65. कोल्या नेगी :- ये जाति कुमाऊं से आकर गढ़वाल के कोल्ली गांव में बस गयी।

66. सौत्याल नेगी :- ये जाति डोटी, नेपाल से आकर गढ़वाल के सौती गांव में बस गयी।

67. चिन्तोला नेगी :- ये चिंतोलगढ़ के मूल निवासी हैं।

68. खडक्काड़ी नेगी :- ये मायापुर से आकर गढ़वाल में आकर बसे हैं।

69. बुलसाडा नेगी :- कैंत्यूरा पूर्व जाति के वंशज बुलसाडा नेगी कुमाऊं के मूल निवासी हैं।

इसके अतिरिक्त नीलकंठी नेगी, नेकी नेगी, जरदारी नेगी, हाथी नेगी, खत्री नेगी, मोंडा नेगी आदि के बारे में जानकारी उपलब्ध नहीं हो सकी है।

गुसाईं जाति के राजपूत

70. कंडारी गुसाईं :- कंडारी गुसाईं जाति के लोग मथुरा के समीप किसी स्थान से संवत 428 में गढ़वाल आए। इन्हें कंडारी गढ़ के ठाकुरी राजाओं के वंश की जाति माना जाता है।

71.  घुरदुड़ा गुसाईं :- घुरदुड़ा गुसाईं जाति के बारे में रतूड़ी जी लिखते हैं कि “ये लोग स्वयं को लगभग नवीं शताब्दी में गुजरात के मेहसाणा से आया हुआ मानते हैं। इनके मूलपुरुष का नाम चंद्रदेव घुरदेव बताया जाता है। गढ़वाल में एक पूरी पट्टी इनकी ठकुराई पट्टी है। कुमाऊं में ये लोग गढ़वाल से ही गए हैं।”

72. पटवाल गुसाईं :- पटवाल गुसाईं जाति के बारे में माना जाता है कि ये प्रयाग से संवत 1212 में गढ़वाल में आए। गढ़वाल के पाटा गांव में बसने से इनके नाम से ही गढ़वाल के एक पट्टी का नाम पटवाल स्यूं पड़ा।

73. रौथाण गुसाईं :- ये संवत 945 में रथभौं दिल्ली के समीप किसी अज्ञात स्थान से आकर गढ़वाल में बसे।

74. खाती गुसाईं :- पौड़ी गढ़वाल में खातस्यूं खाती गुसाईं जाति की थात की पट्टी मानी जाती है।

ठाकुर जाति के राजपूत

75. सजवाण ठाकुर :- महाराष्ट्र से आए मरहट्टा वंश के सजवाण ठाकुर जाति के लोग गढ़वाल में आए और यहीं के निवासी हो गए। ये प्राचीन ठाकुरी राजाओं की संतानें मानी जाती हैं।

76. मखलोगा ठाकुर :- पुण्डीर वंशीय मख्लोगा ठाकुर संवत 1403 में मायापुर से गढ़वाल के मखलोगी नामक गांव में आकर बसे और तत्पश्चात वहीं के निवासी हो गए।

77. तड्याल ठाकुर :- इनका प्रथम गांव तड़ी गांव बताया जाता है।

78. पयाल ठाकुर :- ये कुरुवंशी वंश से सम्बद्ध हैं। ये हस्तिनापुर से आकर गढ़वाल के पयाल गांव में बसे।

79. राणा ठाकुर :- ये सूर्यवंशी वंश वंशज हैं जो कि संवत 1405 में चितौड़ से गढ़वाल में आकर बसे।

अन्य राजपूत

80. राणा :- नागवंशी वंश से सम्बंधित राणा राजपूत जाति के लोग हूण देश से आकर गढ़वाल में बसे। इन्हें गढ़वाल के प्राचीन निवासियों में से एक माना जाता है।

81. कठैत :- कटोच वंश के वंशज कठैत जाति के लोग कांगड़ा, हिमाचल से आकर गढ़वाल में बस गए।

82. वेदी खत्री :- ये खत्री वंश के वंशज हैं जो संवत 1700 में नेपाल से गढ़वाल आए।

83. पजाई :- पजाई राजपूतों को कुमाऊं का मूल निवासी माना जाता है।

84. रांगड़़ :- ये रांगड़़ वंश के वंशज हैं जो सहारनुपर से गढ़वाल में आकर बस गए।

85. कैंत्यूरा :- ये कैंत्यूरा वंश के हैं जो कुमाऊं से गढ़वाल में आए।

86. नकोटी :- ये नगरकोटी वंश के वंशज हैं जो नगरकोट, कांगड़ा से गढ़वाल में आए। गढ़वाल के नकोट गांव में बसने के कारण ये नकोटी कहलाए।

87. कमीण :- इनके बारे में पर्याप्त जानकारी उपलब्ध नहीं है।

88. कुरमणी :- इनके मूलपुरुष का नाम कुर्म था संभवतः उनके नाम से ही ये कुरमणी कहलाए।

89. धमादा :- इन्हें पुराने गढ़ाधीश की संतानें माना जाता हैं।

90. कंडियाल :- इनका प्रथम गांव कांडी था इसीलिए ये कंडियाल कहलाए।

91. बैडोगा :- बैडोगा जाति के लोगों का प्रथम गांव गढ़वाल का बैडोगी गांव माना जाता है।

92. मुखमाल :- इनका प्रथम गांव मुखवा या मुखेम गांव माना जाता है।

93. थपल्याल :- ये थापली गांव, चांदपुर में बसने के कारण थ्पल्याल कहलाए।

94. डंगवाल :- डंगवाल जाति के राजपूत गढ़वाल के डांग गांव के निवासी हैं।

95. मेहता :- यह जाति दरअसल वैश्य है जो कि संवत 1590 में पानीपत से गढ़वाल आयी।

96. रणौत :- इसे सिसोदियों की एक शाखा माना जाता है जो कि राजपुताना से गढ़वाल में आयी।

97. रौछेला :- ये जाति दिल्ली से गढ़वाल में आयी।

98. जस्कोटी :- ये जाति सहारनपुर, उ.प्र. से आकर गढ़वाल के जसकोट नामक गांव में आकर बस गयी।

99. दोरयाल :- ये द्वाराहाट, कुमाऊं के निवासी माने जाते हैं।

100. मयाल :- ये कुमाऊं के मूल निवासी माने जाते हैं।

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सन्दर्भ :-
1. गढ़वाल का इतिहास – प. हरिकृष्ण रतूड़ी, संपा. – डॉ. यशवंत सिंह कठोच
2. गढ़वाली भाषा और उसका लोकसाहित्य – डॉ. जनार्दन प्रसाद काला
3. गढ़वाल हिमालय : इतिहास, संस्कृति, यात्रा एवं पर्यटन  – रमाकांत बेंजवाल
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संकलनकर्ता – नवीन चन्द्र नौटियाल
शोधार्थी, जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नई दिल्ली
मूल निवासी- गांव – रखूण, पट्टी – सितोनस्यूं, पौड़ी गढ़वाल (उत्तराखंड)
वर्तमान निवासी- जनकपुरी, नई दिल्ली।।

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21 Comments

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (10-09-2019) को     "स्वर-व्यञ्जन ही तो है जीवन"  (चर्चा अंक- 3454)  पर भी होगी।–
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।सादर…!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

  2. Namaskar PATTI SABLI KE DHOBIGHAT,BADADU,'AAMKULAU'SYUNSI,KAKRODA,NOGAON ME BHADKILA RAWATON KA ITIHAAS KYA HAI.KOI JANKARI HO TO PL.SHARE KARE.

  3. UK ke RAWAT Rajput Rajasthan k Mangra local word Means pahad (Hilly Area) Rajasthan ke Rajsamand Ke Narwar (Devair) – AJMER ke Narvar Tak base hue hai (Nivas karte Hai) Mangra Merwara RAWAT Rajput Called local language Thakar BEAWAR,Bhim Todgrah

  4. कठैत रावत जाति मार्शल कोम है , राजपूत ठाकुर जाति है ,जो प्राचीन समय में राजस्थान के अजमेर प्रांत के मगरे क्षेत्र से आकर बसे है ,,

  5. Aur eak chej bhandari chota surname hota to uttrakhand ka log rawat kunwar Chouhan caste wala bhandari sa marriage kyo karta hai pls don't spread fake data

  6. उत्तराखंड के सभी राजपूत भाईयों से निवेदन है कि राजस्थान मे अजमेर/ब्यावर/राजसमंद/पाली/भीलवाड़ा के आसपास एक रावत राजपूत समुदाय रहता है। इस समुदाय के साथ राजस्थान के राजपूत विवाह सम्बन्ध नहीं करते हैं तथा ये पहले अनुसूचित जनजाति मेर जाती के थे अब इन्हें ओबीसी मे जाना जाता है। उत्तराखंड के रावत राजपूत सरनेम सेम होने से ये सोसियल मिडिया में आकर पहाड के लोगों को मिसगाइड करते हैं तथा विकीपीडिया मे खुद को पहाड के राजपुतों से जोडते हैं।

  7. झुठ मत फैलाओ,मगरे के अंदर रहो, उत्तराखंड के राजपूतों के इतिहास में अपने आपको मत मिलाओ

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