गढ़वाली-कविता
शिकैत
धनेश कोठारी//
जिंदगी!
तू हमेसा समझाणी रै
मि बिंगणु बि रौं/ पर
माणि कबि नि छौं
जिंदगी!
तिन सदानि दिखै
उकाळ अर उन्दार/पर
मि उकळि कबि नि छौं
जिंदगी!
तेरा डेरा ऐन
उजाळु- अन्ध्यारु बि/ पर
मैं किवाड़ नि खोलि सक्यों
जिंदगी!
बग्त, गर्म्ल हक्क ह्वे
बर्खान् भीजि
ह्युंदिन् अळे बि छ/ पर
तीन्दू कबि सुखै नि सक्यों
जिंदगी!
तेरु घैणु दगड़ू
आज बि दगड़ा छ/ पर
मैं गौळा कबि भ्यंटे नि सक्यों
जिंदगी!
सैंदिष्ट छन
तेरा बाटा घाटा
तेरु बि क्य कसूर/ जब
मैं ई कबि हिटी नि छौं …।
©धनेश कोठारी
16 जुलाई 2019
ऋषिकेश, उत्तराखंड