1850 ई. से 1925 ई. तक
गढवाली में आधुनिक कविताएँ लिखने का आरम्भ ब्रिटिशकाल में ही शुरू हुआ। हाँ 1875 ई. के बाद प. हरिकृष्ण रुडोला, लीलादत्त कोटनाला एवं महंत हर्षपुरी कि त्रिमूर्ति ने गढवाली आधुनिक कविताओं का श्रीगणेश किया यद्यपि इन्होंने कविता रचना उन्नीसवीं सदी में कर दिया था। इन कविताओं का प्रकाशन ‘ गढ़वाली’ पत्रिका एवं गढ़वाली का प्रथम कविता संग्रह ‘गढवाली कवितावली’ में ही हो सका।
बीसवीं सदी के प्रारम्भिक काल गढ़वाली समाज का एक अति महत्वपूर्ण काल रहा है। ब्रिटिश शासन कि कृपा से ग्रामीणों को शासन के तहत पहली बार शिक्षा ग्रहण का वस्र मिला जो कि गढवाली राजा के शासन में उपलब्ध नहीं था। प्राथमिक स्कूलों के खुलने से ग्रामीण गढ़वाल में शिक्षा के प्रति रूचि पैदा हुई। पैसा आने से व नौकरी के अवसर प्राप्त होने से गढ़वाली गढ़वाल से बहार जाने लगे खासकर सेना में नौकरी करने लगे। पलायन का यह प्राथमिक दौर था। समाज में प्रवासियों और शिक्षितों कि पूछ होने लगी थी एवं समाज में इनकी सुनवाई भी होने लगी थी। समाज एक नये समाज में बदलने को आतुर हो रहा था। धन कि आवश्यकता का महत्व बढने लगा था। व्यापार में अदला-बदली (बार्टर) व्यवस्था और सहकारिता के सिद्धांत पर चोट लगनी शुरू हो गयी थी और कहीं ना कहीं सामाजिक सुधार कि आवश्यकता महसूस भी हो रही थी। स्वतंत्रता आन्दोलन गढवाल में जड़ें जुमा चुका ही था।
इस दौर में सामाजिक बदलाव व समाज कि अपेक्षाएं व आवश्यकताओं का सीधा प्रभाव गढ़वाली कविताओं पर पड़ा। सामाजिक उत्थान, प्रेरणादायक, जागरण, धार्मिक, देशभक्ति जैसी ब्रिटी इस समय कि कविताओं में मिलती है। कवित्व संस्कृत और खड़ीबोली से पूरी तरह प्रभावित है। यहाँ तक कि गढ़वाली भाषा के शब्दों को छोड़ हिंदी शब्दों कि भरमार इस युग की कृतियों में मिलती हैं। यह कर्म आज तक चला आ रहा है। चूँकि कर्मकांडी ब्राह्मणों में पढ़ने-पढ़ाने का रिवाज था और आधुनिक शिक्षा ग्रहण में भी ब्राह्मणों ने अगल्यार ल़ी अतः 1925 तक आधुनिक कवि ब्राह्मण ही हुए हैं।
इस समय के कवियों में रुडोला, कोटनाला, पूरी त्रिमूर्ति के अतिरिक्त आत्माराम गैरोला, सत्यशरण रतूड़ी, भवानीदत्त थपलियाल, तारादत्त गैरोला, चंद्रमोहन रतूड़ी, शशि शेखारानंद सकलानी, सनातन सकलानी, देवेन्द्र रतूड़ी, गिरिजा दत्त नैथाणी, मथुरादत्त नैथाणी सुर्द्त्त सकलानी, अम्बिका प्रसाद शर्मा, रत्नाम्बर चंदोला, दयानन्द बहुगुणा, सदानन्द कुकरेती मुख्य कवि हैं।
काव्य संकलनों में गढ़वाली कवितावली (1932) का विशेष स्थान है, जोकि विभिन्न कवियों की कविताओं का प्रथम संकलन भी है। इसके सम्पादक तारादत्त गैरोला हैं और प्रकाशक विश्वम्बर दत्त चंदोला हैं। इस संग्रह का परिवर्तित रूप में दूसरा संग्रह 1984 में चंदोला की सुपुत्री ललिता वैष्णव ने प्रकाशित किया। गढ़वाली कवितावली गढ़वाली भाषा का प्रथम संग्रह है और ऐतिहासिक है। किन्तु इस संग्रह में भूमिका व कवियों के बारे में समालोचना व जीवनवृति हिंदी भाषा में है। गढ़वाली साहित्य की विडम्बना ही है क़ि आज भी काव्य संग्रहों में भूमिका अधिकतर हिंदी में होती है।
@ Bhishma Kukreti