Month: September 2010
सांत्वना (हिन्दी कविता)
दो पीढ़ियों का इन्तजारआयेगा कोईसमझायेगा किउनके आ जाने तक भीनहीं आया था विकासगांव वाले रास्ते के मुहाने पर तुम्हारी आसटुटी…
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हिन्दी-कविता
पहाड़ (हिन्दी कविता)
मेरे दरकने परतुम्हारा चिन्तित होना वाजिब है अब तुम्हें नजर आ रहा हैमेरे साथ अपना दरकता भविष्यलेकिन मेरे दोस्त! देर…
Read More » विकास का सफर (व्यंग्य)
विकास का सफर ढ़ोल ताशों की कर्णभेदी से शुरू होकर शहनाई की विरहजनित धुन के साथ कार्यस्थल पर पहुंचता है।…
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व्यंग्यलोक
काश लालबत्तियां भगवा होती (व्यंग्य)
बसंत के मौल्यार से पहले जब मैं ‘दायित्वधारी‘ जी से मिला था तो बेहद आशान्वित से दमक रहे थे। भरी…
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व्यंग्यलोक
कुत्ता ही हूं, मगर….. (व्यंग्य)
कल तक मेरे नुक्कड़ पर पहुंचते ही भौंकने लगता था वह। जाने कौन जनम का बैर था उसका मुझसे। मुझे…
Read More » अब तुम (गढ़वाली कविता)
अब तुम सिंग ह्वेग्यांरंग्युं स्याळ् न बण्यांन्सौं घैंटणौं सच छवांकखि ख्याल न बण्यांन् उचाणा का अग्याळ् छवांताड़ा का ज्युंदाळ् न…
Read More »गुरूवर! विपक्ष क्या है
आधुनिक शिष्य किताबी सूत्रों से आगे का सवाल दागता है। गुरूजी! विपक्ष क्या होता है? प्रश्न तार्किक था, और शिष्य…
Read More »घंगतोळ् (गढ़वाली कविता)
तू हैंसदी छैं/त बैम नि होंद तू बच्योंदी छैं/त आखर नि लुकदा तू हिटदी छैं/त बाटा नि रुकदा तू मलक्दी…
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