Month: September 2010
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आजकल
’श्रीहरि’ का ध्यान नहीं लग रहा
मैं जब 1995 में सीमान्त क्षेत्र बदरीनाथ पहुंचा था, तो यहां के बर्फीले माहौल में पहाड़ लकदक दिखाई देते थे।…
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चुनावी मेले में परिवर्तन के स्वर
अब अपनी दुखियारी की रोज की भांज हुई कि वह अबके परिवर्तन को कांज के रहेगी। फरानी बुनावट में…
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घुम्मत फिरत (गढ़वाली कविता)
थौळ् देखि जिंदगी कू घुमि घामि चलिग्यंऊं खै क्य पै, क्य सैंति सोरि बुति उकरि चलिग्यऊं लाट धैरि कांद मा…
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व्यंग्यलोक
गिद्ध गणना का सच
अर्ली मॉर्निंग, मानों सूरज के साथ घोड़ों पर सवार खबरी मेरे द्वार पहुंचा। उसके चेहरे पर किरणों की तेजिस्वता की…
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तेरि सक्या त… (गढ़वाली कविता)
ब्वकदी रौ मिन हल्ळु नि होण तेरि सक्या त गर्रू ब्वकणै च दाना हाथुन् भारु नि सकेंदु अबैं दां तू…
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व्यंग्यलोक
सीएम वंश की असंतुष्टि
लोक के तंत्र में ‘सीएम’ वंशीय प्राणियों की असंतुष्टि का असर क्लासरूम तक में पहुंच चुका था। मास्टर जी बेंत…
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व्यंग्यलोक
उल्लू मुंडेर पर
उल्लू के मुंडेर पर बैठते ही मैं आशान्वित हो चुका था। अपनी चौहदी में लक्ष्मी की पर्दार्पण की दंतकथाओं पर…
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बे – ताल चिंतन
काल परिवर्तन ने अब बेताल के चिंतन और वाहक दोनों को बदल दिया। आज वह बिक्रम की पीठ पर सवार…
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गढ़वाली-कविता
डाळी जग्वाळी (गढ़वाली कविता)
हे भैजी यूं डाळ्यों अंगुक्वैकि समाळी बुसेण कटेण न दे राखि जग्वाली आस अर पराण छन हरेक च प्यारी अन्न…
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गढ़वाली-कविता
हिसाब द्या (गढ़वाली कविता)
हम रखणा छां जग्वाळी तैं हर्याळी थैं हिसाब द्या, हिसाब द्या हे दुन्यादार लोखूं तुम निसाब द्या……. तुमरा गंदळा आसमान…
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