Year: 2010
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यात्रा-पर्यटन
परम्पराओं में निहित लोक कल्याण
श्री बदरीनाथ मंदिर के कपाट खुलने और बंद किये जाने की मान्य परम्पराओं के तहत ज्योतिषीय गणनाओं में लोक कल्याण…
Read More » नाथ संप्रदायी साहित्य का प्रभाव
चूँकि गढवाल में नाथ सम्प्रदाय का प्रादुर्भाव सातवीं सदी से होना शुरू हो गया था और इस साहित्य ने गढ़वाल…
Read More »नाथपंथी साहित्य सन्दर्भ
बगैर नाथपंथी साहित्य सन्दर्भ रहित लेख गढवाली कविता इतिहास नहीं डा. विष्णु दत्त कुकरेती के अनुसार नाथ साहित्य में ढोलसागर,…
Read More »लोकसाहित्य में मनोविज्ञान एवं दर्शन
नाथपन्थी साहित्य और गढ़वाली लोकसाहित्य में मनोविज्ञान एवम दर्शनशास्त्र नाथपंथी साहित्य आने से गढवाली भाषा में मनोविज्ञान और दर्शनशास्त्र की…
Read More »गढ़वाली की आदिकाव्य शैली
गढवाली भाषा का आदिकाव्य (Prilimitive Poetry) बाजूबंद काव्य है जो की दुनिया की किसी भी भाषा कविता क्षेत्र में लघुतम…
Read More »आधुनिक गढ़वाळी कविता का इतिहास
गढवाली भाषा का प्रारम्भिक काल गढवाली भाषायी इतिहास अन्वेषण हेतु कोई विशेष प्रयत्न नही हुए हैं, अन्वेषणीय वैज्ञानिक आधारों पर…
Read More »समौ (गढ़वाली कहानी)
चंदरु दिल्ली बिटि घौर जाणों तय्यार छौ, अर वेका गैल मा छौ तय्यार ’झबरु’। झबरु उमेद कु पाळ्यूं कुत्ता छौ।…
Read More »शब्द हैं… (हिन्दी कविता)
पहरों मेंकुंठित नहीं होते शब्दमुखर होते हैंगुंगे नहीं हैं वेबोलते हैंशुन्य का भेद खोलते हैं उनके काले चेहरेसफ़ेद दुधली धुप में…
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यात्रा-पर्यटन
श्री बदरीनाथ सुप्रभातम्
लक्ष्मीविलास नरसिंह गुणाकरेशबैकुण्ठ केशव जनार्दन चक्रपाणे।भक्तार्तिनाशन हरे मधुकैटभारेभूयात् बदर्यधिपते तब सुप्रभातम्।। लक्ष्मीः प्रसन्नवदना जगदाद्यशक्तिःकृत्वाङ्गरागललितं सुमनोज्ञवेषा।संस्तौति शब्दमधुरैर्मुरमर्दनं त्वांभूयात् बदर्यधिपते तव सुप्रभातम्।।…
Read More » कागजि विकास (गढ़वाली कविता)
घाम लग्युं च कागजि डांडोंकाडों कि च फसल उगिंआंकड़ों का बांगा आखरुं माउखड़ कि भूमि सेरा बणिंघाम लग्युं च…………. ढांग…
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