Year: 2010
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व्यंग्यलोक
कुत्ता ही हूं, मगर….. (व्यंग्य)
कल तक मेरे नुक्कड़ पर पहुंचते ही भौंकने लगता था वह। जाने कौन जनम का बैर था उसका मुझसे। मुझे…
Read More » अब तुम (गढ़वाली कविता)
अब तुम सिंग ह्वेग्यांरंग्युं स्याळ् न बण्यांन्सौं घैंटणौं सच छवांकखि ख्याल न बण्यांन् उचाणा का अग्याळ् छवांताड़ा का ज्युंदाळ् न…
Read More »गुरूवर! विपक्ष क्या है
आधुनिक शिष्य किताबी सूत्रों से आगे का सवाल दागता है। गुरूजी! विपक्ष क्या होता है? प्रश्न तार्किक था, और शिष्य…
Read More »घंगतोळ् (गढ़वाली कविता)
तू हैंसदी छैं/त बैम नि होंद तू बच्योंदी छैं/त आखर नि लुकदा तू हिटदी छैं/त बाटा नि रुकदा तू मलक्दी…
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आजकल
’श्रीहरि’ का ध्यान नहीं लग रहा
मैं जब 1995 में सीमान्त क्षेत्र बदरीनाथ पहुंचा था, तो यहां के बर्फीले माहौल में पहाड़ लकदक दिखाई देते थे।…
Read More » चुनावी मेले में परिवर्तन के स्वर
अब अपनी दुखियारी की रोज की भांज हुई कि वह अबके परिवर्तन को कांज के रहेगी। फरानी बुनावट में…
Read More »घुम्मत फिरत (गढ़वाली कविता)
थौळ् देखि जिंदगी कू घुमि घामि चलिग्यंऊं खै क्य पै, क्य सैंति सोरि बुति उकरि चलिग्यऊं लाट धैरि कांद मा…
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व्यंग्यलोक
गिद्ध गणना का सच
अर्ली मॉर्निंग, मानों सूरज के साथ घोड़ों पर सवार खबरी मेरे द्वार पहुंचा। उसके चेहरे पर किरणों की तेजिस्वता की…
Read More » तेरि सक्या त… (गढ़वाली कविता)
ब्वकदी रौ मिन हल्ळु नि होण तेरि सक्या त गर्रू ब्वकणै च दाना हाथुन् भारु नि सकेंदु अबैं दां तू…
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व्यंग्यलोक
सीएम वंश की असंतुष्टि
लोक के तंत्र में ‘सीएम’ वंशीय प्राणियों की असंतुष्टि का असर क्लासरूम तक में पहुंच चुका था। मास्टर जी बेंत…
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