Month: March 2011
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जायें तो जायें कहां
जिस जंगल के रिश्ते से आदि-मानव अपनी गाथा लिखते आया है, वो जंगल आज उदास है. उसके अपने ही रैन-बसेरे…
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बदलौअ (गढ़वाली कविता)
जंगळ् बाघूं कु अब जंगळ् ह्वेगेन जब बिटि जंगळ् हम खुणि पर्यटक स्थल ह्वेगेन बंदुक लेक हम जंगळ् गयां बाग/गौं…
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‘लोक’ संग ‘पॉप’ का फ्यूजन अंदाज है ‘हे रमिए’
इसे लोकगीतों की ही तासीर कहेंगे कि उन्हें जब भी सुना/गुनगुनाया जाय वे भरपूर ताजगी का अहसास कराते हैं। इसलिए…
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उदास न हो (गढ़वाली कविता)
आज अबि उदास न होभोळ त् अबि औण चआस न तोड़ मन न झुरौपाळान् त् उबौण ई च कॉपीराइट- धनेश…
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