हिन्दी-कविता
कही पे आग कहीं पे नदी बहा के चलो

जनकवि- डॉ. अतुल शर्मा//
गांव-गांव में नई किताब लेके चलो
कहीं पे आग कहीं पे नदी बहा के चलो।
हर आंख में सवाल चीखता रहेगा क्या
जवाब घाटियों में बंद अब रहेगा क्या
गांव-गांव में अब पैर को जमा के चलो
कहीं पे आग कहीं पे नदी बहा के चलो।
भ्रष्ट अन्धकार का समुद्र आयेगा
सूर्य झोपड़ी के द्वार पहुंच जायेगा
आंधियों के घरों में भी जरा जा के चलो
कही पे आग कहीं पे नदी बहा के चलो।
तेरी जुबान का सागर तो आज बोलेगा
ये गांव के गली के राज सभी खोलेगा
दिलों की वादियों में गीत का एक बहा के चलो
कहीं पे आग कहीं पे नदी बहा के चलो।