Year: 2015
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संस्कृति
देवतुल्य हैं ढोल दमौऊं
पहाड़ी लोकवाद्य ढोल दमौऊं को देवतुल्य माना गया है। दुनिया का यही एकमात्र वाद्य है जिसमें देवताओं को भी अवतरित…
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किसे है सभ्य बने रहने की जरुरत
जमाने के साथ बदलते पहाड़ी संगीत के बहाने कई बार बहसें शुरू हुई। उनके अब तक भले ही पूरी तरह…
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गेस्ट-कॉर्नर
नई ऊर्जा, नई दिशा और नया आकाश
तुंगनाथ मंदिर में नौबत बजाने वाले लोक कलाकार मोलूदास के अंतिम क्षणों में हमें जो बात सबसे अधिक आहत कर…
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लोक स्वीकृत रचना बनती है लोकगीत
लोकगीतों के संदर्भ में कहा जाता है, कि लोक जीवन से जुड़ी, लोक स्वीकृत गीत, कृति, रचना ही एक अवधि…
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संस्कृति
..और उम्मीद की रोशनी से भर गई जिंदगियां
तू जिन्दा है तो जिंदगी की जीत पर यकीन कर, अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला जमीन पर… दीपोत्सव…
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आजकल
नई लोकभाषा का ‘करतब’ क्यों ?
उत्तराखण्ड को एक नई भाषा की जरुरत की बात कई बार उठी। यह विचार कुछ वैसा ही है जैसे राज्य…
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आजकल
गैरसैंण राजधानी : जैंता इक दिन त आलु..
अगर ये सोच जा रहा हैं कि गैरसैंण में कुछ सरकारी कार्यालयों को खोल देने से. कुछ नई सड़कें बना…
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झड़ने लगे हैं गांव
चारू चन्द्र चंदोला// सूखे पत्तों की तरह झड़ने लगे हैं यहाँ के गाँवउजड़ने लगी है मनुष्यों की एक अच्छी स्थापना…
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