Year: 2016
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गुलज़ार साहब की कविता “गढ़वाली” में
लोग सै ब्वळदिन, ब्यठुला हैंकि बानि का उलखणि सि हुंदिन । सर्या राति फस्सोरिक नि सिंदिन, कभि घुर्यट त कबरि…
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समझौता-विहीन संघर्षों की क्रांतिकारी विरासत को सलाम
तेइस अप्रैल, 1930 को बिना गोली चले, बिना बम फटे पेशावर में इतना बड़ा धमाका हो गया कि एकाएक अंग्रेज…
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दुनिया ने जिन्हें माना पहाड़ों का गांधी
24 दिसंबर 1925 को अखोड़ी गाँव,पट्टी-ग्यारह गांव, घनसाली, टिहरी गढ़वाल में श्रीमती कल्दी देवी और श्री सुरेशानंद जी के घर…
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गोर ह्वेग्यो हम
जैकि मरजि जनै आणी, वु उनै लठ्याणूं छ जैकि गौं जनै आणी, वु उनै हकाणू छ ज्वी जनै पैटाणू छ,…
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पुरातन
युगों से याद हैं सुमाड़ी के ‘पंथ्या दादा’
‘जुग जुग तक रालू याद सुमाड़ी कू पंथ्या दादा’ लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी के एक गीत की यह पंक्तियां आपको याद…
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हत्यारी सडक
अतुल सती// ऋषिकेश से लेकर बद्रीनाथ तक लेटी है नाग की तरह जबडा फैलाये हत्यारी सडक राममार्ग 58 रोज माँगती…
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… जिसकी जागर सुन, बरस जाते हैं बादल
उत्तराखंड को लोक और उसकी संस्कृति अपनी आगोश में अब भी काफी कुछ अनकहा, अनछुए पहलुओं को छुपाए हुए है. इन्हीं…
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हुजुर !! मुझे गेस्ट राजधानी न बना देना…
मैं गैरसैण हूं…. । राज्य बने हुये 16 बरस बीत जाने को है, लेकिन आज भी राजधानी के नाम पर…
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काफल पाको ! मिन नि चाखो
‘काफल‘ एक लोककथा उत्तराखंड के एक गांव में एक विधवा औरत और उसकी 6-7 साल की बेटी रहते थे। गरीबी में किसी तरह दोनों…
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सामयिक गीतों से दिलों में बसे ‘नेगी’
अप्रतिम लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी के उत्तराखंड से लेकर देश दुनिया में चमकने के कई कारक माने जाते हैं.…
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