Month: May 2019
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‘जानलेवा’ कवि (व्यंग्य)
ललित मोहन रयाल // ‘जानलेवा’ उनका तखल्लुस था, ओरिजिनल नाम में जाने की, कभी किसी ने जरूरत ही नहीं समझी।…
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बल हमारे गांव में
चंदन नेगी// बैठकों में हल टंगे हैं.. बल हमारे गांव में अब नेताओं के मजे हैं.. बल हमारे गांव में…
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गढ़वाली-कुमाउंनी फिल्मों के लिए विश्व सिनेमा की प्रासंगिकता
– भीष्म कुकरेती प्रसिद्ध डौक्युमेंट्री रचनाधर्मी पॉल रोथा का सन 1930 में कहा थां जो आज भी तर्कसंगत है कि…
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पीले पत्ते
कवि- प्रबोध उनियाल पतझड़ की मार झेल रहे अपने आंगन में नीम के पेड़ के पत्तों को पीला होते हुए…
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