गढ़वाली-कविता
बांजि बैराट (गढ़वाली कविता)
हे जी!
अब त
अपणु राज
अपणु पाट
स्यू
किलै पकड़ीं
स्या खाट
अरे लठ्याळी!
बिराणु नौ बल
बिराणा ठाट
द्यखणि त छैं/ तैं
बांजि बैराट
Source : Jyundal (A Collection of Garhwali Poems)
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