गढ़वाली-कविता
अथ श्री उत्तराखंड दर्शनम्
नेत्र सिंह असवाल //
जयति जय-जय देवभूमि, जयति
उत्तराखंड जी
उत्तराखंड जी
कांणा गरूड़ चिफळचट्ट, मनखि
उत्तणादंड जी।
उत्तणादंड जी।
तेरि रिकदूंल्यूं की जै-जै, तेरि
मुसदूल्यूं की जै
मुसदूल्यूं की जै
त्यारा गुंणी बांदरू की, बाबा
बजि खंड जी।
बजि खंड जी।
इक मिनिस्टर धुरपिळम् पट, एक
उबरा अड़गट्यूं
उबरा अड़गट्यूं
हैंकू खांदम नप्प ब्वादा, धारी
म्यारू डंड जी।
म्यारू डंड जी।
माट मंग ज्वन्नि व मेंहनत, मोल
क्वी नी खेति कू
क्वी नी खेति कू
यू बुढ़ापा पिनसन छ, रोग
जमा फंड जी।
जमा फंड जी।
मुंड निखोळू करिगीं बगतळ, ऊ भगत
त्यरा तरि गईं
त्यरा तरि गईं
जौंकि दुयया जगा टंगड़ी, ऊंकि
अकळाकंड जी।
अकळाकंड जी।
दुख दलेदर कष्ट मिटलो, नौनु
बूंण जालु जी
बूंण जालु जी
गांणि-स्याणि-ताणि निशिदिन, रीटिगे
बरमंड जी।
बरमंड जी।
परदेस अपणू देस अभि भी, अभि
भि ‘देसी’ ‘पहाड़ि’ जी
भि ‘देसी’ ‘पहाड़ि’ जी
बत्तीस सीढ़ी ‘कुरदरा’ की, अभि भि घळचाघंड जी।