गढ़वाली-कविता
पण… (गढ़वाली कविता)
ग्वथनी का गौं मा बल
सुबेर त होंदी च/ पण
पाळु नि उबौन्दु
ग्वथनी का गौं मा बल
घाम त औंद च/ पण
ठिंणी नि जांदी
ग्वथनी का गौं मा बल
मंगारु त पगळ्यूं च/ पण
तीस नि हबरान्दी
ग्वथनी का गौं मा बल
उंदार त सौंगि च/ पण
स्या उकाळ नि चड़्येन्दी
ग्वथनी का गौं मा बल
ब्याळी बसायत च/ पण
आज-भोळ नि रैंद
ग्वथनी का गौं मा बल
सतीर काळी ह्वईं छन/ पण
चुलखान्दौं आग नि होंद
ग्वथनी का गौं मा बल
दौ-मौ नि बिसर्दू बाद्दी/ पण
बादिण हुंगरा नि लांदी
ग्वथनी का गौं मा बल
इस्कुलै चिणैं त ह्वईं च/ पण
बाराखड़ी लुकि जांदी
ग्वथनी का गौं मा बल
स्याळ त गुणि माथमि दिखेंदा/ पण
रज्जा जोगी जोगड़ा ह्वेजांदा
ग्वथनी का गौं मा बल
सौब धाणि त च/ पण
कुछ कत्त नि चितेंद।
Source : Jyundal (A Collection of Garhwali Poems)
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