गेस्ट-कॉर्नर
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उत्तराखंड में आज भी जारी है ‘उमेश डोभालों’ की जंग
सत्तर के दशक में गढ़वाल विश्वविद्यालय का मेघावी छात्र उमेश डोभाल कलम के चश्के के कारण घुमन्तू पत्रकार बन गया।…
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मछेरा जाल लपेटने ही वाला है
गढ़वाली लोक साहित्य के शिखर, डा. गोविंद चातक पर विशेष ‘जब सभ्यता बहुत सभ्य हो जाती है तो वह अपनी…
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नशे से इतर भांग की खेती के हैं कई फायदे
उत्तराखंड की पूर्ववर्ती सरकार ने कारोबारी तौर पर भांग की खेती के लिए कदम उठाए ही थे, कि भद्रजनों और…
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अगर हम किताबें नहीं पढ़ेंगे…
जो लोग किताबें नहीं पढ़ते, वे अंततः राम-रहीम को जन्म देते हैं। हमारे समाज में राम-रहीम पैदा होते हैं, क्योंकि…
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सिर्फ भाषणों और नारों से नहीं बचती बेटियां!
जिस पर बेटियों के साथ दुराचार व हत्या के आरोप में सीबीआई जांच के बाद न्यायालय में मुकदमा चल रहा…
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आखिर क्या मुहं दिखाएंगे ?
किचन में टोकरी पर आराम से पैर पसारे छोटे से टमाटर को मैं ऐसे निहार रहा था, जैसे वो शो-केस…
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समझौता-विहीन संघर्षों की क्रांतिकारी विरासत को सलाम
तेइस अप्रैल, 1930 को बिना गोली चले, बिना बम फटे पेशावर में इतना बड़ा धमाका हो गया कि एकाएक अंग्रेज…
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दुनिया ने जिन्हें माना पहाड़ों का गांधी
24 दिसंबर 1925 को अखोड़ी गाँव,पट्टी-ग्यारह गांव, घनसाली, टिहरी गढ़वाल में श्रीमती कल्दी देवी और श्री सुरेशानंद जी के घर…
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मैं माधो सिंह का मलेथा हूँ
हुजूर!! मैं मलेथा हूँ, गढ़वाल के 52 गढ़ों के बीरों की बीरता के इतिहास की जीती जागती मिसाल। मैंने इतिहास को बनते और…
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नई ऊर्जा, नई दिशा और नया आकाश
– धाद लोक वाद्य एवं लोककला संवर्धन स्वायत्त सहकारिता तुंगनाथ मंदिर में नौबत बजाने वाले लोक-कलाकार मोलूदास के अंतिम क्षणों में हमें जो बात सबसे अधिक आहत कर गई थी, वो एक तरह की अघोषित सांस्कृतिक अश्पृश्यता थी। केवल ‘कृपा’ पर जीने की आदत ने उनके परिजनों और उन्हीं के समाज में मानवीय सम्मान की चाहत को भी कहीं गहरे दफना दिया था। ये सवाल उठा तो, मगर आगे नहीं बढ़ सका।…
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