गढ़वाली-कविता

  • मनखि (गढ़वाली-कविता) धर्मेन्द्र नेगी

    विकास-विकास चिल्लाण लैगे मनखि बिणास बुलाण लैगे घौ सैणैं हिकमत नि रैगे वेफर हिंवाळ आँखा घुर्याण लैगे उड्यार पुटग दम…

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  • ग़ज़ल (गढ़वाली)

    दिनेश कुकरेती (वरिष्ठ पत्रकार) – जख अपणु क्वी नी, वख डांडा आगि कु सार छ भैजी, जख सौब अपणा सि…

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  • हमरु गढ़वाल

    कवि श्री कन्हैयालाल डंडरियाल खरड़ी डांडी पुन्गड़ी लाल धरती को मुकुट भारत को भाल हमरु गढ़वाल यखै संस्कृति – गिंदडु,…

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  • अपण ब्वे का मैस

    अपण ब्वे का मैस/ होला वो/ जो हमरि जिकुड़ि मा घैंटणा रैन/ घैंटणा छन कीला/वाडा/दांदा! जो, हमारा नौ फर, कागज…

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  • मेरो हिमालय

    म्यारा ऊंचा हिमालय तै शांत रैण द्या नि पौंछावा सड़की पुंगड़ी – कूड़ी नि दब्यौण द्या, म्यारा ऊंचा हिमालय तै…

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  • अस्पताल

    सुविधा त सबि छन यख अजगाल अस्पताल मा डागटर च दवे च कंपौंडर च यख तक कि नर्स अर आया…

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  • अथ श्री उत्तराखंड दर्शनम्

    नेत्र सिंह असवाल // जयति जय-जय देवभूमि, जयति उत्तराखंड जी कांणा गरूड़ चिफळचट्ट, मनखि उत्तणादंड जी। तेरि रिकदूंल्यूं की जै-जै,…

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  • Garhwali Kavita । Rakesh Mohan Khantwal । हमको पाड़ी ब्वन्ना छन

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  • “सुबेर नि हूंदि“ (गज़ल)

    काम काज़ा की अब कैथै देर नि हूंदि अजकाल म्यारा गौं मा सुबेर नि हूंदि घाम त तुमरि देळमि कुरबुरि…

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  • गुलज़ार साहब की कविता “गढ़वाली” में

    लोग सै ब्वळदिन, ब्यठुला हैंकि बानि का उलखणि सि हुंदिन । सर्या राति फस्सोरिक नि सिंदिन, कभि घुर्यट त कबरि…

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