गढ़वाली-कविता
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 मेरि पुंगड़्यों (गढ़वाली कविता)मेरि पुंगड़्योंहौरि धणि अब किछु नि होंदपण, नेता खुब उपजदन् मेरि पुंगड़्योंबीज बिज्वाड़खाद पाणिलवर्ति-मंड्वर्तिकिछु नि चैंदस्यू नाज पाणिडाळा बुटळाखौड़ कत्यार… Read More »
- कागजि विकास (गढ़वाली कविता)- घाम लग्युं च कागजि डांडोंकाडों कि च फसल उगिंआंकड़ों का बांगा आखरुं माउखड़ कि भूमि सेरा बणिंघाम लग्युं च…………. ढांग… Read More »
- उत्तराखण्ड बणौंण हमुन् (गढ़वाली कविता)- अब कैकू नि रोण हमुनउत्तराखण्ड बणौंण हमुन उजाड़ कुड़ि पुंगड़्यों तैंउदास अळ्सी मुखड़्यों तैंफूल अरोंगि पंखड़्यों तैंपित्तुन पकीं ज्युकड़्यों तैंअब… Read More »
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 गांधीवाद (गढ़वाली कविता)सि बिंगौंणा छनगांधीवाद अपनावाबोट देण का बादगांधी का तीनबांदरूं कि तरांआंखा-कंदुड़/ अरमुक बुजिद्यावा Source : Jyundal (A… Read More »
- अब तुम (गढ़वाली कविता)- अब तुम सिंग ह्वेग्यांरंग्युं स्याळ् न बण्यांन्सौं घैंटणौं सच छवांकखि ख्याल न बण्यांन् उचाणा का अग्याळ् छवांताड़ा का ज्युंदाळ् न… Read More »
- घंगतोळ् (गढ़वाली कविता)- तू हैंसदी छैं/त बैम नि होंद तू बच्योंदी छैं/त आखर नि लुकदा तू हिटदी छैं/त बाटा नि रुकदा तू मलक्दी… Read More »
- घुम्मत फिरत (गढ़वाली कविता)- थौळ् देखि जिंदगी कू घुमि घामि चलिग्यंऊं खै क्य पै, क्य सैंति सोरि बुति उकरि चलिग्यऊं लाट धैरि कांद मा… Read More »
- तेरि सक्या त… (गढ़वाली कविता)- ब्वकदी रौ मिन हल्ळु नि होण तेरि सक्या त गर्रू ब्वकणै च दाना हाथुन् भारु नि सकेंदु अबैं दां तू… Read More »
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 डाळी जग्वाळी (गढ़वाली कविता)हे भैजी यूं डाळ्यों अंगुक्वैकि समाळी बुसेण कटेण न दे राखि जग्वाली आस अर पराण छन हरेक च प्यारी अन्न… Read More »
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 हिसाब द्या (गढ़वाली कविता)हम रखणा छां जग्वाळी तैं हर्याळी थैं हिसाब द्या, हिसाब द्या हे दुन्यादार लोखूं तुम निसाब द्या……. तुमरा गंदळा आसमान… Read More »



