हिन्दी-कविता

  • मैं हंसी नहीं बेचता

    जी हांमैं हंसी नहीं बेचतान हंसा पाता हूं किसी कोक्‍योंकि मुझे कई बारहंसने की बजाए रोना आता है हंसने हंसाने…

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  • वह आ रहा है अभी..

    कुछ लोग कह रहे हैंतुम मत आओवह आ रहा है अभी उसके आने से पहलेतुम आओगे, तोकुछ नहीं बदलेगा यहां-वहांन…

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  • हां.. तुम जीत जाओगे

    हां.. निश्चित हीतुम जीत जाओगेक्योंकि तुम जानते होजीतने का फनसाम, दाम, दंड, भेद तुम्हें सिर्फ जीत चाहिएएक अदद कुर्सी के लिएजिसके…

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  • बसंत

    लो फिर आ गया बसंतअपनी मुखड़ी में मौल्‍यार लेकरचाहता था मैं भीअन्‍वार बदले मेरी मेरे ढहते पाखों मेंजम जाएं कुछ…

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  • तय मानो

    तय मानोंदेश लुटेगाबार-बार, हरबार लुटेगातब-तब, जब तक खड़े रहोगे चुनाव के दिनअंधों की कतारों मेंसमझते रहोगे-ह्वां- ह्वां करतेसियारों के क्रंदन…

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  • बाबा केदार के दरबार में

    जगमोहन ‘आज़ाद’//  खुद के दुखों का पिटारा लेखुशीयां समेटने गए थे वो सबजो अब नहीं है…साथ हमारे,बाबा केदार के दरबार में…

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  • क्या फर्क पड़ता है

    ये इतनी लाशेंकिस की हैंक्यों बिखरी पड़ी हैंये बच्चा किसका हैमां को क्यों खोज रहा है….मां मां चिलाते हुएदूर उस…

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  • मैं, इंतजार में हूं

    मैं, समझ गया हूंतुम भी, समझ चुके हो शायदमगर, एक तीसरा आदमी हैजो, चौथे और पांचवे के –बहकावे में आ…

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  • बेटियां

    कई बार देखाबेटियों को बेटा बनते हुएमगर, बेटेहर बार बेटे ही बने देखे इसलिएजोर देकर कहूंगाबेटियां तो ‘बेटियां’ ही होती…

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  • नदी क्यों सिखाया मुझे (हिन्दी कविता)

    नदी !तुने क्यों सिखा दिया मुझेअपनी तरह बहने का पाठसब कुछ बहाने की आदत क्यों ? प्रश्रय दियापहाड़ों से निकलमैदानों…

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