गढ़वाली-कविता
-
घंगतोळ् (गढ़वाली कविता)
तू हैंसदी छैं/त बैम नि होंद तू बच्योंदी छैं/त आखर नि लुकदा तू हिटदी छैं/त बाटा नि रुकदा तू मलक्दी…
Read More » -
घुम्मत फिरत (गढ़वाली कविता)
थौळ् देखि जिंदगी कू घुमि घामि चलिग्यंऊं खै क्य पै, क्य सैंति सोरि बुति उकरि चलिग्यऊं लाट धैरि कांद मा…
Read More » -
तेरि सक्या त… (गढ़वाली कविता)
ब्वकदी रौ मिन हल्ळु नि होण तेरि सक्या त गर्रू ब्वकणै च दाना हाथुन् भारु नि सकेंदु अबैं दां तू…
Read More » -
डाळी जग्वाळी (गढ़वाली कविता)
हे भैजी यूं डाळ्यों अंगुक्वैकि समाळी बुसेण कटेण न दे राखि जग्वाली आस अर पराण छन हरेक च प्यारी अन्न…
Read More » -
हिसाब द्या (गढ़वाली कविता)
हम रखणा छां जग्वाळी तैं हर्याळी थैं हिसाब द्या, हिसाब द्या हे दुन्यादार लोखूं तुम निसाब द्या……. तुमरा गंदळा आसमान…
Read More » -
पण… (गढ़वाली कविता)
ग्वथनी का गौं मा बल सुबेर त होंदी च/ पण पाळु नि उबौन्दु ग्वथनी का गौं मा बल घाम त…
Read More » -
चुनू (गढ़वाली कविता)
हे जी! अब/ चुनौ कू बग्त औंण वाळु च तुमन् कै जिताण अरेऽ अबारि दां मिन अफ्वी खड़ु ह्वेक सबूं…
Read More » -
भरोसा कू अकाळ (गढ़वाली कविता)
जख मा देखि छै आस कि छाया वी पाणि अब कौज्याळ ह्वेगे जौं जंगळूं कब्बि गर्जदा छा शेर ऊंकू रज्जा…
Read More » -
बांजि बैराट (गढ़वाली कविता)
हे जी! अब त अपणु राज अपणु पाट स्यू किलै पकड़ीं स्या खाट अरे लठ्याळी! बिराणु नौ बल बिराणा ठाट…
Read More » -
गौं कु विकास (गढ़वाली कविता)
हे जी! इन बोदिन बल कि गौं का विकास का बिगर देश अर समाज कु बिकास संभव नि च हांऽ…
Read More »