साहित्य
तेरि सक्या त… (गढ़वाली कविता)
ब्वकदी रौ मिन हल्ळु नि होण तेरि सक्या त गर्रू ब्वकणै च दाना हाथुन् भारु नि सकेंदु अबैं दां तू…
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डाळी जग्वाळी (गढ़वाली कविता)
हे भैजी यूं डाळ्यों अंगुक्वैकि समाळी बुसेण कटेण न दे राखि जग्वाली आस अर पराण छन हरेक च प्यारी अन्न…
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हिसाब द्या (गढ़वाली कविता)
हम रखणा छां जग्वाळी तैं हर्याळी थैं हिसाब द्या, हिसाब द्या हे दुन्यादार लोखूं तुम निसाब द्या……. तुमरा गंदळा आसमान…
Read More » पण… (गढ़वाली कविता)
ग्वथनी का गौं मा बल सुबेर त होंदी च/ पण पाळु नि उबौन्दु ग्वथनी का गौं मा बल घाम त…
Read More »चुनू (गढ़वाली कविता)
हे जी! अब/ चुनौ कू बग्त औंण वाळु च तुमन् कै जिताण अरेऽ अबारि दां मिन अफ्वी खड़ु ह्वेक सबूं…
Read More »भरोसा कू अकाळ (गढ़वाली कविता)
जख मा देखि छै आस कि छाया वी पाणि अब कौज्याळ ह्वेगे जौं जंगळूं कब्बि गर्जदा छा शेर ऊंकू रज्जा…
Read More »बांजि बैराट (गढ़वाली कविता)
हे जी! अब त अपणु राज अपणु पाट स्यू किलै पकड़ीं स्या खाट अरे लठ्याळी! बिराणु नौ बल बिराणा ठाट…
Read More »गौं कु विकास (गढ़वाली कविता)
हे जी! इन बोदिन बल कि गौं का विकास का बिगर देश अर समाज कु बिकास संभव नि च हांऽ…
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सामाजिक हलचलों की ‘आस’
बिसराये जाने के दौर में भी गढ़वाली साहित्य के ढंगारों में लगातार पौध रोपी ही नहीं जा रही, बल्कि अंकुरित…
Read More » हम त गढ़वळी……
हम त गढ़वळी छां भैजी दूर परदेस कखि बि हम तैं क्यांकि शरम अब त अलग च राज हमरु अलग…
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