साहित्य
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‘खुद’ अर ‘खैरि’ की डैअरि (diary)
समीक्षक -आशीष सुन्दरियाल / संसार की कै भि बोली-भाषा का साहित्य की सबसे बड़ी सामर्थ्य होंद वेकी संप्रेषणता अर साहित्य…
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कही पे आग कहीं पे नदी बहा के चलो
जनकवि- डॉ. अतुल शर्मा/ गांव-गांव में नई किताब लेके चलो कहीं पे आग कहीं पे नदी बहा के चलो। हर…
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मेरि ब्वै खुणै नि आइ मदर्स डे (गढ़वाली कविता)
पयाश पोखड़ा // मेरि तींदि गद्यलि निवताणा मा, मेरि गत्यूड़ि की तैण रसकाणा मा, लप्वड़्यां सलदरास उखळजाणा मा, मेरि ब्वै…
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बल हमारे गांव में
चंदन नेगी// बैठकों में हल टंगे हैं.. बल हमारे गांव में अब नेताओं के मजे हैं.. बल हमारे गांव में…
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पीले पत्ते
कवि- प्रबोध उनियाल पतझड़ की मार झेल रहे अपने आंगन में नीम के पेड़ के पत्तों को पीला होते हुए…
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मनखि (गढ़वाली-कविता) धर्मेन्द्र नेगी
विकास-विकास चिल्लाण लैगे मनखि बिणास बुलाण लैगे घौ सैणैं हिकमत नि रैगे वेफर हिंवाळ आँखा घुर्याण लैगे उड्यार पुटग दम…
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तन के भूगोल से परे
निर्मला पुतुल/ तन के भूगोल से परे एक स्त्री के मन की गांठें खोलकर कभी पढ़ा है तुमने उसके भीतर…
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ग़ज़ल (गढ़वाली)
दिनेश कुकरेती (वरिष्ठ पत्रकार) – जख अपणु क्वी नी, वख डांडा आगि कु सार छ भैजी, जख सौब अपणा सि…
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जैसे को तैसा
( लघुकथा ) गांव में एक किसान रहता था जो दूध से दही और मक्खन बनाकर बेचने का काम करता…
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हमरु गढ़वाल
कवि श्री कन्हैयालाल डंडरियाल खरड़ी डांडी पुन्गड़ी लाल धरती को मुकुट भारत को भाल हमरु गढ़वाल यखै संस्कृति – गिंदडु,…
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