व्यंग्यलोक
कन्फ्यूजिंग प्रश्नों पर चाहूं रायशुमारी
अपने भविष्य को लेकर आजकल बड़ा कन्फ्यूजिया गया हूं। निर्धारण नहीं कर पा रहा हूं, कौन सा मुखौटा लगाऊं।…
Read More »लोकल ‘पप्पू’ भी सांसत में
वर्षों से कोई ‘पप्पू’ पुकारता रहा, तो बुरा नहीं लगा। मगर अब उन्हीं लोगों को ‘पप्पू’ का अखरना, समझ नहीं…
Read More »हे उल्लूक महाराज
आप जब कभी किसी के यहां भी पधारे, लक्ष्मी जी ने उसकी योग्यता देखे बगैर उसी पर विश्वास कर लिया।…
Read More »छन्नी, छन्ना अर मट्यंळ
अच्काल श्याम ह्व़े ना अर दरेक/प्रत्येक टी.वी. चैनेलुं मा दिन भर की खबरूं छांच छुल़े जांद.क्वी चैनेल नाम दींदु हाई…
Read More »तबादला उद्योग !
तबादला उद्योग उद्योग बि उनि उद्योग च जन हौर कंसल्टिंग उद्योग होंदन. जी! हाँ पैल दलाल/बिचौलिया जौंकू बोल्दा छा ऊन…
Read More »लोकसभा मा क्य काम-काज हूंद भै ?
(Garhwali Satire, Garhwal Humorous essays, Satire in Uttarakahndi Languages, Himalayan Languages Satire and Humour ) अच्काल पार्लियामेंट मा रोज इथगा…
Read More »क्य मि बुढे गयों ?
फिर बि मै इन लगद मि बुढे गयों! ना ना मि अबि बि दु दु सीढ़ी फळआंग लगैक चढदु. कुद्दी…
Read More »विकास का सफर (व्यंग्य)
विकास का सफर ढ़ोल ताशों की कर्णभेदी से शुरू होकर शहनाई की विरहजनित धुन के साथ कार्यस्थल पर पहुंचता है।…
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काश लालबत्तियां भगवा होती (व्यंग्य)
बसंत के मौल्यार से पहले जब मैं ‘दायित्वधारी‘ जी से मिला था तो बेहद आशान्वित से दमक रहे थे। भरी…
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कुत्ता ही हूं, मगर….. (व्यंग्य)
कल तक मेरे नुक्कड़ पर पहुंचते ही भौंकने लगता था वह। जाने कौन जनम का बैर था उसका मुझसे। मुझे…
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