गढ़वाली-कविता

बदलौअ (गढ़वाली कविता)

जंगळ् बाघूं कु
अब जंगळ् ह्वेगेन
जब बिटि जंगळ् हम खुणि

पर्यटक स्थल ह्वेगेन

बंदुक लेक हम जंगळ् गयां
बाग/गौं मा ऐगे
हम घ्वीड़-काखड़ मारिक लयां
त वु/दुधेळ् नौन्याळ् लिगे

वेन् कबि हमरु नौ नि धर्रि
हमुन त वे मनस्वाग बांचि

बाबु-दादै जागिर कु हक त
सोरा-भारों मा बटेंद
हम त
वेका सोरा-भारा बि नि
वेका हक पर
हमरि धाकना किलै

जब बि
कखि ओडा सर्कयेंदन्
लुछेंदि आजादी त
जल्मदू वर्ग संघर्ष

हमरि देल्यों मा
बाघै घात
वर्ग संघर्ष से उपज्यूं
बस्स
हमरु ही स्वाळ्-द्वारु च

सौजन्य– ज्यूंदाळ (गढ़वाली कविता सग्रह)
Copyright@ Dhanesh Kothari

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