साहित्य
मध्य हिमालयी भाषा का तुलनात्मक अध्ययन
मध्य हिमालयी कुमाउंनी, गढ़वाली एवं नेपाली भाषा-व्याकरण का तुलनात्मक अध्ययन भाग -6 
(गढ़वाली में सर्वनाम विधान)
(गढ़वाली में सर्वनाम विधान)
इस  लेखमाला का उद्देश्य  मध्य हिमालयी कुमाउंनी,  गढ़वाळी एवम नेपाली भाषाओँ  के व्याकरण का शास्त्रीय  पद्धति कृत  अध्ययन  नही है अपितु परदेश में बसे  नेपालियों, कुमॉनियों व गढ़वालियों में अपनी भाषा के संरक्षण हेतु प्रेरित  करना अधिक है.  मैंने व्याकरण या व्याकरणीय शास्त्र  का कक्षा बारहवीं तक  को छोड़ कभी कोई औपचारिक शिक्षा  ग्रहण नही की ना ही मेरा यह विषय/क्षेत्र  रहा है. अत: यदि मेरे अध्ययन में शास्त्रीय  त्रुटी मिले तो मुझे सूचित कर  दीजियेगा जिससे मै उन त्रुटियों को समुचित  ढंग से सुधार कर लूँगा. वास्तव  में मैंने इस लेखमाला को अंग्रेजी में शुरू किया था किन्तु फिर अधिसंख्य  पाठकों की दृष्टि से मुझे  हिंदी में ही इस लेखमाला को लिखने का निश्चय  करना  पड़ा . आशा है यह लघु कदम  मेरे उद्देश्य पूर्ति हेतु एक पहल माना  जायेगा. मध्य हिमालय की सभी भाषाएँ ध्वन्यात्म्क हैं और  कम्प्यूटर में  प्रत्येक भाषा  की विशिष्ठ लिपि न होने से कहीं कहीं सही अक्षर लिखने की  दिक्कत अवश्य आती है 
किन्तु हम कुमाउंनी , गढवालियों व नेपालियों को इस परेशानी को दूसरे ढंग से सुलझानी होगी ना की फोकट की विद्वतापूर्ण बात कर नई लिपि बनाने पर फोकटिया बहस करनी चाहिए. —- भीष्म कुकरेती )
 पुरुष वाचक सर्वनाम:  गढवाली में कुमाउनी की तरह स्त्रीलिंग व पुरुषवाचक संज्ञाओं का पृथक सत्ता  है. हिंदी के पुर्श्वचक अन्य पुरुष सर्वनाम ‘वह’ के लिए गढ़वाली में  स्यू/स्यो व स्त्रीलिंग में स्या है. बहुवचन में पुल्लिंग व स्त्रीलिंग एक  समान हो जाते हैं ‘वै’ ‘वूं’ हो जटा है और वा भी ‘वूं’ हो जाता है  
                    गढवाली भाषा- व्याकरण वेत्ता अबोध बंधु बहुगुणा व लेखिका  रजनी कुकरेती ने गढ़वाली सर्वनामों को प्रयोगानुसार पाँच भागों में विभक्त किया है 
१-पुरुष वाचक सर्वनाम –  मैं, तू, मि
२-निश्चय वाचक सर्वनाम – या, यू, वा, वु, स्या, स्यू
३- सम्बन्ध वाचक -जु , ज्वा
४-प्रश्न वाचक – कु, क्वा, क्या,
५- अनिश्य वाचक – क्वी
अबोध बंधु ने जहाँ सर्वनामों को तालिका बद्ध कर  उदहारण दिए हैं वहीं रजनी ने करक अनुसार तालिका दी है.  नेपाली, कुमाउनी व  गढ़वाली व्याकरण के तुलनात्मक अध्ययन हेतु रजनी कुकरेती की दी हुयी तालिका  विशष महत्व रखती है, यद्यपि बहुगुणा की तालिका का महत्व कम नही आंका जा  सकता
——————–
पुरुषवाचक ————-एकवचन ———वहुवचन —————एकवचन ——–बहुवचन
उत्तम पु.—————–मि/मै ———– हम ———————मि —————-हम
माध्यम पु. —————तु —————-तुम ——————–तु ——————तुम
अन्यपुरुष —————-उ/ओ ————वु ———————–वा —————–वु
२- निश्चय वाचक ——–वी —————वी ———————वै /वई—————वी
—————————-स्
—————————-यो ————–यि /इ ——————या———-
३- अनिश्चय वाचक ——क्वी ————-क्वी ——————-क्वी —————-क्वी
——————————
——————————
४-सम्बन्ध वाचक ———जु —————-जु ——————–ज्वा —————-  जु
—————————–
—————————–
५- प्रश्न वाचक ————को —————-कु ——————-क्वा —————–  कु
क्या —————-क्यक्या——-
रजनी   कुकरेती ने मै, तेरा,तुमारा, स्यू/स्या, वु/वा , यू/या, जु/ज्वा क्वा/कु  को कारक अनुसार तालिका बढ कर विश्लेषण किया है  . कुछ उदाहरण निम्न हैं
मैं/मि उभय लिंगी सर्वनाम तालिका
कारक———विभक्ति ——————————
——————————
करता ———-न ——————————
कर्म ————सन/सणि/तैं/ सैञ ——————-में /मै -सणि/सन/तैं/सैञ—————
करण ———-से ——————————
सम्प्रदान —–कुण/कुणि/खुण/खुणि/कुतैं–
अपादान ——बिटी ——————————
छटी ———-म/ मू ——————————
अधिकरण—–मा—————–
 तु उभयलिंगी सर्वनाम तालिका
कारक———विभक्ति ——————————
   ——————————
करता ———-न ——————————
कर्म ————सन/सणि/तैं/ सैञ————————–
करण ———-से——————
सम्प्रदान ——कुणि/कुण/कुतैं/ खुणि ——————— त्वेकुणि/कुण/कुतैं/ खुणि ——————-तुमकुणि/कु
अपादान ——बिटी ——————————
छटी ———-म/मू—————-
अधिकरण- /मा—————————
इस प्रकार हम पाते हैं कि गढ़वाली सर्वनाम का  लिंग व वचन भेद क्रिया, विशेषण व स्थान  आदि से भी सम्बन्ध है
संदर्भ  : 
१- अबोध बंधु  बहुगुणा , १९६० , गढ़वाली व्याकरण की रूप रेखा, गढ़वाल साहित्य मंडल , दिल्ली
२- बाल कृष्ण बाल , स्ट्रक्चर ऑफ़  नेपाली   ग्रैमर , मदन पुरूस्कार, पुस्तकालय , नेपाल 
३- भवानी दत्त उप्रेती , १९७६, कुमाउंनी भाषा  अध्ययन, कुमाउंनी समिति, इलाहाबाद 
४- रजनी कुकरेती, २०१०, गढ़वाली भाषा का व्याकरण,  विनसर पब्लिशिंग कं. देहरादून 
५- कन्हयालाल डंड़रियाल , गढ़वाली शब्दकोश, २०११-२०१२ , शैलवाणी साप्ताहिक, कोटद्वार,  में लम्बी लेखमाला  
६- अरविन्द पुरोहित , बीना बेंजवाल , २००७, गढ़वाली -हिंदी शब्दकोश , विनसर प्रकाशन, देहरादून 
७- श्री एम्’एस. मेहता (मेरा पहाड़ ) से बातचीत 
८- श्रीमती हीरा देवी नयाल (पालूड़ी, बेलधार , अल्मोड़ा)   , मुंबई  से कुमाउंनी  शब्दों के बारे में बातचीत 
९- श्रीमती शकुंतला देवी , अछ्ब, पन्द्र-बीस क्षेत्र,  , नेपाल, नेपाली भाषा सम्बन्धित पूछताछ 
१० – भूपति ढकाल , १९८७ , नेपाली व्याकरण को संक्षिप्त दिग्दर्शन , रत्न पुस्तक , भण्डार, नेपाल 
११- कृष्ण प्रसाद पराजुली , १९८४,  राम्रो रचना , मीठो नेपाली, सहयोगी प्रेस, नेपाल 
 Comparative Study of Kumauni Grammar , Garhwali Grammar and Nepali  Grammar (Grammar of , Mid Himalayan  Languages  ) to be continued  ……... @ मध्य हिमालयी भाषा संरक्षण समिति
(Comparative Study of Grammar of Kumauni, Garhwali Grammar and Nepali Grammar ,Grammar of  Mid Himalayan  Languages-Part-6 )  
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                    सम्पादन :     भीष्म कुकरेती 

 
						


