नजरिया

गैरा बिटि सैंणा मा

उत्तराखण्ड
की जनसंख्या के अनुपात में गैरसैंण राजधानी के पक्षधरों की तादाद को वोट
के नजरिये से देखें तो संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता है। क्योंकि दो चुनावों
में नतीजे पक्ष में नहीं गये हैं। सत्तासीनों के लिए अभी तक ‘हॉट सबजेक्ट’
नहीं बन पाया है। आखिर क्यों? लोकतंत्र के वर्तमान परिदृश्य में ‘मनमानी’
के लिए डण्डा अपने हाथ में होना चाहिए। यानि राजनितिक ताकत जरूरी है। राज्य
निर्माण के दस साला अन्तराल में देखें तो गैरसैण के हितैषियों की राजनितिक
ताकत नकारखाने में दुबकती आवाज से ज्यादा नहीं। कारणों को समझने के लिए
राज्य निर्माण के दौर में लौटना होगा।

शर्मनाक मुजफ़्फ़रनगर कांड के
बाद ही यहां मौजुदा राजनितिक दलों में वर्चस्व की जंग छिड़ चुकी थी। एक ओर
उत्तराखण्ड संयुक्त संघर्ष समिति में यूकेडी और वामपंथी तबकों के साथ
कांग्रेसी बिना झण्डों के सड़कों पर थे, तो दूसरी तरफ भाजपा ने ‘सैलाब’ को
अपने कमण्डल भरने के लिए समान्तर तम्बू गाड़ लिये थे। जिसका फलित
राज्यान्दोलन के शेष समयान्तराल में उत्तराखण्ड की अवाम खेमों में ही नहीं
बंटी बल्कि चुप भी होने लगी थी। उम्मीदें हांफने लगी थी, भविष्य का सूरज
दलों की गिरफ्त में कैद हो चुका था। ठीक ऐसे वक्त में केन्द्रासीन भाजपा ने
राज्य बनाने की ताकीद की, तो विश्वास बढ़ा अपने पुराने ‘खिलकों’ पर ‘चलकैस’
आने का। किन्तु भ्रम ज्यादा दिन नहीं टिका। सियासी हलकों में ‘आम’ की बजाय
‘खास’ की जमात ने ‘सौदौं की व्यवहारिकता’ को ज्यादा तरजीह दी। नतीजा आम
लो़गों की जुबान में कहें तो “उत्तराखण्ड से उप्र ही ठीक था”।

इतने
में भी तसल्ली होती उन्हें तो कोई बात नहीं राज्य निर्माण की तारीख तक
आते-आते भाजपा ने राज्य की सीमाओं को च्वींगम बना डाला। अलग पहाड़ी राज्य के
सपने को बिखरने की यह पहली साजिश मानी जाती है। आधे-अधूरे मन से
‘प्रश्नचिह्‍नों’ पर लटकाकर थमा दिया हमें ‘उत्तरांचल’। यों भी भाजपा पहले
भी पृथक राज्य की पक्षधर नहीं थी। नब्बे दशक तक इस मांग को देशद्रोही मांग
के रूप में भी प्रचारित किया गया। दुसरा, तब उसे उत्तराखण्ड को पूर्ण पहाड़ी
राज्य बनाना राजनितिक तौर पर फायदेमन्द नहीं दिखा। शायद इसलिए कि पहाड़ की
मात्र चार संसदीय सीटें केन्द्र के लिहाज से अहमियत नहीं रखती थी। आज के
हालातों के लिए सिर्फ़ भाजपा ही जिम्मेदार है यह कहना कांग्रेस और यूकेडी का
बचाव करना होगा। आखिर उसके पहले मुख्यमंत्री ने भी तो ‘लाश पर’ राज्य
बनाने की धमकी दी थी। उसने भी तो अपने पूरे कार्यकाल में ‘सौदागरों’ की एक
नई जमात तैयार की। जिसे गैरसैण से ज्यादा मुनाफ़े से मतलब है।
इन
दिनों गढ़वाल सांसद सतपाल महाराज ने गैरसैण में बिधानसभा बनाने की मांग कर
और इसके लिए क्षेत्र में सभायें जुटाकर भाजपा और यूकेडी में हलचल पैदा कर
दी है। नतीजा की राजधानी आयोग की रिपोर्ट दबाकर बैठी निशंक सरकार ने इस
मसले पर सर्वदलीय पंचायत बुलाने का शिगूफ़ा छोड़ दिया है। इन हलचलों को
ईमानदार पहल मान लेना शायद जल्दबाजी के साथ भूल भी होगी। क्योंकि यह कवायद
मिशन २०१२ तक पहाड़ को गुमराह करने तक ही सीमित लगती है। महाराज गैरसैण में
राजधानी निर्माण करने की बजाय सिर्फ़ बिधानसभा की ही बात कर रहे हैं। तो उधर
उनके राज्याध्यक्ष व प्रतिपक्ष ने गैरसैण में बिधानसभा पर भी मुंह नहीं
खोल रहे हैं। ऐसे में क्या माना जाय? यूकेडी ने नये अध्यक्ष को कमान सौंपी
है। वे गैरसैण राजधानी के पक्षधर भी माने जाते है। लेकिन क्या वे सत्ता के
साझीदार होकर राजधानी निर्माण के प्रति ईमानदार हो पायेंगे?

गैरसैण
के बहाने उत्तराखण्ड की एक और तस्वीर को भी देखें। जहां सत्ता ने सौदागरों
की फौज खड़ी कर दी है। वहीं गांवों से वार्डों तक नेताओं की जबरदस्त भर्ती
हुई है। जो अपने खर्चे पर विदेशों तक से वोट बुलाकर घोषित ‘नेता’ बन जाना
चाहते हैं। यह मैं इसलिए कह रहा हूं कि बीते पंचायत चुनाव में ५५००० से
ज्यादा लोग ‘नेता’ बनना चाहते थे। अब यदि इस राज्य में ५५००० लोग जनसेवा के
लिए आगे आये तो गैरसैण जैसे मसले पर हमारी चिन्तायें फिजुल हैं। लेकिन ये
फौज वाकई जनसेवा के लिए अवतरित हुई है यह हालातों को देखकर समझा जा सकता
है।

ऐसे में गैरसैण राजधानी कब बनेगी? इस पर मैं अपनी एक गढ़वाली कविता उद्धृत करना चाहूंगा–

गैरा बिटि सैंणा मा

हे द्‍यूरा!
स्य राजधनि
गैरसैंण कब तलै
ऐ जाली?
बस्स बौजि!
जै दिन
तुमरि-मेरि
अर
हमरा ननतिनों का
ननतिनों कि
लटुलि फुलि जैलि
शैद
वे दिन
स्या राज-धनि
तै गैरा बिटि
ये सैंणा मा
ऐ जाली।

Source : Jyundal (A Collection of Garhwali Poems)
Copyright@ Dhanesh Kothari

Related Articles

2 Comments

  1. आपका ब्लॉग मुझे बहुत अच्छा लगा। मेरा ब्लॉग "नवीन जोशी समग्र"(http://navinjoshi.in/) भी देखें। इसके हिंदी ब्लॉगिंग को समर्पित पेज "हिंदी समग्र" (http://navinjoshi.in/hindi-samagra/) पर आपका ब्लॉग भी शामिल किया गया है। अन्य हिंदी ब्लॉगर भी अपने ब्लॉग को यहाँ चेक कर सकते हैं, और न होने पर कॉमेंट्स के जरिये अपने ब्लॉग के नाम व URL सहित सूचित कर सकते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button