हिन्दी-कविता
देवदार
अनिल कार्की //
मेरे पास
अन्नत की यात्राएं नहीं
न ही यात्राओं के
दस्तावेज
मैं देवदार हूँ
मनिप्लाँट होना
मेरे बस में नहीं
इतिहास पर
मेरा कोई दावा नहीं
उन कुर्सीयों पर भी नहीं
जिन्हें बनाते हुए
मुझे बढ़ई ने
बीस जगहों पर
जोड़ा तोड़ा
जोड़ तोड़ से
मेरा वास्ता नहीं
मैं अब भी
पहाड़ की किसी धार पर
तुम्हारे लिए
चिर प्रतिक्षारत हूँ
ओ प्रेमी युगलो !
तुम आना
मेरे तने को खुरच के
लिख जाना अपना नाम
लेकर तने का सहारा
चूम जाना एक दूसरे को
सबसे तेज धूप
सबसे तेज बारिस
बर्फीली आंधियों में
पहाड़ की पीठ पर
मै तुम्हारे प्रेम को बचाये रखूँगा
सम्भाले रखूँगा
तुम्हारे चुम्भन
तुम लौटना
शताब्दियों बाद
तमाम यात्राओं से
ले जाना मुझसे वापस
अपना यौवन
मैं खड़ा रहूँगा
तुम्हारी बाट जोहूँगा।