संस्कृति
देवतुल्य हैं ढोल दमौऊं
पहाड़ी लोकवाद्य ढोल दमौऊं को देवतुल्य माना गया है। दुनिया का यही एकमात्र वाद्य है जिसमें देवताओं को भी अवतरित करने की शक्ति है। तांबे व पीतल से बने इस ढोल के दोनों छोर की पुड़ (मढ़ी हुई खाल) में दिन–रात के देवता सूर्य, चंद्रमा: डोर में गणेश भगवान के विराजित होने का उल्लेख पौराणिक संदर्भों में मिलता है। इसके साथ प्रयुक्त दमौऊ को काली के खप्पर के रूप में माना जाता है। इनके नाद स्वरों के वर्णन में शब्दकारों ने ढोलसागर रचा है, जिसमें ढोल–दमौऊ से गुंजित नादस्वरों व तालों को शब्दायित किया गया है।
माना जाता है कि ढोल के तालस्वरों में भी भगवती सरस्वती का वास है। पहाड़ के सभी मंगल कार्यों के वक्त ढोल से ‘धुंयाळ’ उद्बोधित कर शुभारम्भ का आह्वान किया जाता है तो वहीं जागर, वार्ता, पंवड़ा में विविध तालों से सृष्टि उत्पति की कथा, वीरों की शौर्य कथायें और चैती के द्वारा प्रकृति के सौंदर्य को लोकजीवन में प्रवाहित किया जाता है।