साहित्य
‘खुद’ अर ‘खैरि’ की डैअरि (diary)
समीक्षक -आशीष सुन्दरियाल /
संसार की
कै भि बोली-भाषा का साहित्य की सबसे बड़ी सामर्थ्य होंद वेकी संप्रेषणता अर साहित्य
की संप्रेषणता को सबसे बड़ो कारण होंद वे साहित्य मा संचारित होण विळ संवेदना, प्रकट
होण वळा भाव। अर भाव एवं भावोनुभूति की शब्दों का माध्यम से अभिव्यक्ति से रचना होंद
कविता की। या फिर इनो भि ब्वले सकेंद कि कविता तैं जन्म देंद ‘भाव’, वो भाव जो जन्म
ल्हेंदी ‘मन’ मा, जै खुणि गढविळ मा ब्वलदां हम ‘ज्यू’।
संसार की
कै भि बोली-भाषा का साहित्य की सबसे बड़ी सामर्थ्य होंद वेकी संप्रेषणता अर साहित्य
की संप्रेषणता को सबसे बड़ो कारण होंद वे साहित्य मा संचारित होण विळ संवेदना, प्रकट
होण वळा भाव। अर भाव एवं भावोनुभूति की शब्दों का माध्यम से अभिव्यक्ति से रचना होंद
कविता की। या फिर इनो भि ब्वले सकेंद कि कविता तैं जन्म देंद ‘भाव’, वो भाव जो जन्म
ल्हेंदी ‘मन’ मा, जै खुणि गढविळ मा ब्वलदां हम ‘ज्यू’।
‘ज्यू त
ब्वनू च’ कविता संग्रह मा भी हम तैं कवि अनूप रावत का ज्यू याने मन मा जन्म ल्हेंदा
भाव अर यूं भावों से जन्म ल्हेदीं कविता ही नजर औंदिन्। अर शायद ये ही कारण से गढविळ
का वरिष्ठ साहित्यकार मदन मोहन डुकलान यीं किताब की भूमिका को शीर्षक रखदन ‘क्वांसा
पराणै कुंगलि कविता’ याने भावुक हृदय की कोमल कविताएं।
ब्वनू च’ कविता संग्रह मा भी हम तैं कवि अनूप रावत का ज्यू याने मन मा जन्म ल्हेंदा
भाव अर यूं भावों से जन्म ल्हेदीं कविता ही नजर औंदिन्। अर शायद ये ही कारण से गढविळ
का वरिष्ठ साहित्यकार मदन मोहन डुकलान यीं किताब की भूमिका को शीर्षक रखदन ‘क्वांसा
पराणै कुंगलि कविता’ याने भावुक हृदय की कोमल कविताएं।
‘ज्यू त
ब्वनू च’ कवि अनूप रावत की पैलि पुस्तक च अर अपणा ये पैला कविता संग्रह मा वो बनि-
बनि की बावन कविताओं तै ल्हेकि पाठकों का समणि औणा छन। कवि को मूल स्वर पयालन च जनकि
यीं पुस्तक का वास्ता द्वी शब्द लिखद दौं वरिष्ठ साहित्यकार दिनेश ध्यानी जी भी रेखांकित
कर्ना छन। पर दगड़ मा कवि जन्मभूमि का प्रति वेको प्रेम, वखा समाज से वेको जुड़ाव अर
वखै संस्कृति से वेको लगाव तैं भी लगातार अपणी रचनाओं का माध्यम से अभिव्यक्त कर्नू
च। वे तैं अपणा घर-गौं की ‘खुद’ लगणी च अर इलै वो ल्यखणू किः
ब्वनू च’ कवि अनूप रावत की पैलि पुस्तक च अर अपणा ये पैला कविता संग्रह मा वो बनि-
बनि की बावन कविताओं तै ल्हेकि पाठकों का समणि औणा छन। कवि को मूल स्वर पयालन च जनकि
यीं पुस्तक का वास्ता द्वी शब्द लिखद दौं वरिष्ठ साहित्यकार दिनेश ध्यानी जी भी रेखांकित
कर्ना छन। पर दगड़ मा कवि जन्मभूमि का प्रति वेको प्रेम, वखा समाज से वेको जुड़ाव अर
वखै संस्कृति से वेको लगाव तैं भी लगातार अपणी रचनाओं का माध्यम से अभिव्यक्त कर्नू
च। वे तैं अपणा घर-गौं की ‘खुद’ लगणी च अर इलै वो ल्यखणू किः
ज्यू त
ब्वनू च कि
ब्वनू च कि
सट्ट से
जौं ब्वे की खुचिलि मा
जौं ब्वे की खुचिलि मा
सब दुःख
विपदौं तै बिसरि
विपदौं तै बिसरि
पर क्य
कन मी दूर परदेश
कन मी दूर परदेश
अर मेरि
ब्वे च दूर डांडा घार
ब्वे च दूर डांडा घार
-‘ज्यू
त ब्वनू च’ बटे
त ब्वनू च’ बटे
कवि अनूप
रावत भले आज भैर ऐकि रैणू च पर वेको ज्यू (मन) आज भी पहाड़ मा हि च। पहाड़ का प्रति आज
भी वो सचेत च। वखै हर साहित्यिक, सामाजिक व राजनैतिक घटना पर वेकि पैनी नज़र च। तबि
त उतराखण्ड राज्य को अपेक्षित विकास नि ह्वे यीं बात से कवि को युवा हृदय आक्रोशित
च अर वो जनप्रतिनिधियों से सीधा सवाल कर्नू च कि-
रावत भले आज भैर ऐकि रैणू च पर वेको ज्यू (मन) आज भी पहाड़ मा हि च। पहाड़ का प्रति आज
भी वो सचेत च। वखै हर साहित्यिक, सामाजिक व राजनैतिक घटना पर वेकि पैनी नज़र च। तबि
त उतराखण्ड राज्य को अपेक्षित विकास नि ह्वे यीं बात से कवि को युवा हृदय आक्रोशित
च अर वो जनप्रतिनिधियों से सीधा सवाल कर्नू च कि-
खैरि खांदा-खांदा
गरीब मिटिगे
गरीब मिटिगे
गरीबी मिटेली,
ब्वाला कब तक
ब्वाला कब तक
देरादूण
बल खूब हूणी च बैठक
बल खूब हूणी च बैठक
विधायक
जी पहाड़ आला, ब्वाला कब तक
जी पहाड़ आला, ब्वाला कब तक
– ‘ब्वाला
कब तक’ बटे
कब तक’ बटे
हर छ्वटा
बड़ा काम मा शराब को प्रचलन आज उत्तराखण्ड मा आम बात ह्वेगे। ‘सूर्य अस्त अर पहाड़ मस्त’
की समस्या से त्रस्त पहाड़ी समाज की यीं वेदना से अनूप रावत को कवि हृदय भी अछूतो नी
च। दारू दैंत्य पर कवि अनूप लिखद कि…
बड़ा काम मा शराब को प्रचलन आज उत्तराखण्ड मा आम बात ह्वेगे। ‘सूर्य अस्त अर पहाड़ मस्त’
की समस्या से त्रस्त पहाड़ी समाज की यीं वेदना से अनूप रावत को कवि हृदय भी अछूतो नी
च। दारू दैंत्य पर कवि अनूप लिखद कि…
यीं निरभै
दारूल मेरू गौं-मुलुक लुटियाली
दारूल मेरू गौं-मुलुक लुटियाली
पींण वलों
की डुबै, बेचण वलों की बणैयाली
की डुबै, बेचण वलों की बणैयाली
पक्की बिकणी
च खुलेआम बजारों मा
च खुलेआम बजारों मा
कच्ची बणणी
च दूर डांडा धारू मा
च दूर डांडा धारू मा
बणीं मवसी
यीं दारुल घाम लगैयाली
यीं दारुल घाम लगैयाली
-‘निरभै
दारु’ बटे
दारु’ बटे
शराब का
दगडै़-दगड़ कन्या भ्रूण हत्या, दहेज व अन्धविश्वास जनी कतनै सामाजिक बुराइयों पर भी
ये कविता संग्रह मा अनूप रावत की कलम चलयीं च। दगड़ मा वो चकबन्दी जना जनजागृति अर सामाजिक
चेतना का मुद्दा पर भी चुप नी बैठदा।
दगडै़-दगड़ कन्या भ्रूण हत्या, दहेज व अन्धविश्वास जनी कतनै सामाजिक बुराइयों पर भी
ये कविता संग्रह मा अनूप रावत की कलम चलयीं च। दगड़ मा वो चकबन्दी जना जनजागृति अर सामाजिक
चेतना का मुद्दा पर भी चुप नी बैठदा।
युवा कवि
हूणा का नाता उम्मीद छै कि कुछ श्रृंगार रस की कविता ये संग्रह मा होली पर ये मामला
मा शायद अनूप अभि जरा पैथर च, पर ब्यंग्य व हास्य रस की कुछ कविता ज़रूर यीं पोथि मा
पढ़णा खुणि मिलदन्। जनकि-
हूणा का नाता उम्मीद छै कि कुछ श्रृंगार रस की कविता ये संग्रह मा होली पर ये मामला
मा शायद अनूप अभि जरा पैथर च, पर ब्यंग्य व हास्य रस की कुछ कविता ज़रूर यीं पोथि मा
पढ़णा खुणि मिलदन्। जनकि-
बजार गयुं
तो गजब देखा
तो गजब देखा
चौमीन मोमो
बर्गर बिकते देखे
बर्गर बिकते देखे
च्या बणाएगा
अब तो कौन
अब तो कौन
पेप्सी
लिम्का कोक बैठि पीते देखे
लिम्का कोक बैठि पीते देखे
हकबक तो
तब रै गया मैं जब
तब रै गया मैं जब
ह्यूंद
में आईसक्रीम खाते देखे
में आईसक्रीम खाते देखे
-‘कतगा
बदल गया अब उत्तराखण्ड’ बटे
बदल गया अब उत्तराखण्ड’ बटे
भाषा-शैली
की दृष्टि से ‘ज्यू च ब्वनू च’ मा भौत ही सरल अर आम बोलचाल की भाषा को इस्तेमाल कवि
अनूप रावत को कयूं च। कखि कखिम वूंकी स्थानीय बोली को प्रभाव ज़रूर च, पर नयी पीढ़ी आसानी
से बींग जावा कवि इनो प्रयास करदो नज़र आणू च। तबि त इंग्लिश अर हिन्दी का शब्द भी यत्र-तत्र
दिखे जंदिन। दगड़ मा कुछ नया बिम्ब व प्रतीक भी यीं पोथि मा प्रयोग हुयां छन जो कि नया
जमना अर नयी सदी का हिसाब से स्वाभाविक भी छन अर सटीक भी।
की दृष्टि से ‘ज्यू च ब्वनू च’ मा भौत ही सरल अर आम बोलचाल की भाषा को इस्तेमाल कवि
अनूप रावत को कयूं च। कखि कखिम वूंकी स्थानीय बोली को प्रभाव ज़रूर च, पर नयी पीढ़ी आसानी
से बींग जावा कवि इनो प्रयास करदो नज़र आणू च। तबि त इंग्लिश अर हिन्दी का शब्द भी यत्र-तत्र
दिखे जंदिन। दगड़ मा कुछ नया बिम्ब व प्रतीक भी यीं पोथि मा प्रयोग हुयां छन जो कि नया
जमना अर नयी सदी का हिसाब से स्वाभाविक भी छन अर सटीक भी।
कुल मिलैकि,
52 कविताओं को यो कविता संग्रह 21वीं सदी का एक युवा कवि की गढ़-साहित्य सृजन का यज्ञ
मा पैली अग्याल़ च अर उम्मीद च कि वो अपणी यीं सृजन यात्रा तैं निरन्तर अगनै बढाणा
राला अर साहित्य को भण्डार भ्वर्ना राला।
52 कविताओं को यो कविता संग्रह 21वीं सदी का एक युवा कवि की गढ़-साहित्य सृजन का यज्ञ
मा पैली अग्याल़ च अर उम्मीद च कि वो अपणी यीं सृजन यात्रा तैं निरन्तर अगनै बढाणा
राला अर साहित्य को भण्डार भ्वर्ना राला।
इनी शुभकामनाओं
का दगड़-
का दगड़-
समीक्षक
-आशीष सुन्दरियाल
-आशीष सुन्दरियाल
आशीष सुंदरियाल भैजी अर बोल पहाड़ी का संपादक श्री धनेश कोठारी जी कु हार्दिक धन्यवाद।