गढ़वाल: इस गांव में आज भी निभाई जा रही मामा पौणा की परंपरा
• शीशपाल गुसाईं
Mama Pauna Tradition : सदियों से चली आ रही मामा पौणा (मामा मेहमान) की प्रथा नरेंद्रनगर ब्लॉक के दोगी पट्टी में आज भी जीवित है। जो कि महान संस्कृति को जीवित रखती है। प्रथा के अनुसार भांजे की शादी में मामा को घोड़े में मेहमान के रूप में लड़की (वधु) के यहां ले जाया जाता है और उनके गले में मालाएं होती हैं जिससे वह विशेष मेहमान के दर्जे में आते हैं। लोकगीतों में भी मामा पौणा के बहुत सारे गीत सुनने को मिलते हैं। गढ़वाल क्षेत्र यह इलाका धन्य है जिन्होंने इस परंपरा को आज भी जीवित रखा है।
मामा पौणा ( मामा मेहमान) लोगों को अपनी विरासत को महत्व देने के लिए प्रेरित करती है। मामा पौणा की प्रथा आज भी समाज में बहुत महत्वपूर्ण है। यह संस्कृति एक सामाजिक सम्बंध को प्रदर्शित करती है और सभी नाते-रिस्तेदारों गांव के बीच सद्भाव एवं मित्रता को बढ़ावा देती है। मामा को विशेष रूप से व्यवस्थित घोड़े पर बैठा कर और देखने से भांजे के परिवार में प्रेम और सम्मान का भी बोध होता है। यह हमारी संस्कृति में अनुसरित गहन रीतियों और रीति-रिवाजों की प्रमाणित करती है।
पूरे विवाह उत्सव के दौरान, मामा की महत्वता का पालन किया जाता है। वह एक साधारण अतिथि नहीं रहते हैं, उनकी सम्मान और आदर की स्थिति अन्य मेहमानों से तीन गुनी ज्यादा रहती है। उनका योगदान एक पारिवारिक बंधन को प्रतिष्ठा और मान्यता का प्रतीक रूप में देखा जाता है। उनकी भूमिका एक रिश्तेदार से आगे की रहती है, दूल्हे की खुशी और सुख की जिम्मेदारी उठाने की जिम्मेदारी मामा की होती है। वर को घोड़ी में ले जाया जाता था और मामा के लिए एक अलग घोड़े की व्यवस्था की जाती थी, उनके गले में भी वर नारायण की भांति माला होती थी।
मामा पौणा की काफी जगहों पर यह परंपरा खत्म हो गई है। क्योंकि सड़कें पहुँच गईं हैं, घोड़े अब गाँव में नहीं रहे, गांव खाली हो रहे हैं। ज्यादातर शादियां कस्बे, शहरों में हो रही हैं। लेकिन फिर भी नरेंद्रनगर के दोगी पट्टी सहित गढ़वाल के कई क्षेत्र में यह परंपरा कुछ गांव के लोगों ने जिंदा रखी हुई हैं। जरूर आज की चकाचौंध से सामाजिक स्तर पर कड़ी मुश्किलें भी आती होंगी, इन प्राचीन परंपराओं का समर्थन कोई नहीं करेगा, तो कैसे हमारी महान संस्कृति जीवित रह सकेगी?
फोटो में मामा पौणा हमारे मित्र अधिशासी अभियंता सिंचाई विभाग हैं। जो दोगी पट्टी के रहने वाले हैं। भांजे संदीप की शादी में ल्वेल गांव जा रहे हैं। वह मुझे 6 साल पहले जब मैं गढ़वाल का अंतिम महाराजा शहीद प्रद्युमन शाह पर काम कर रहा था, तब वह एक दिन देहरादून में मिले थे। तब से हम फेसबुक मित्र बने। यह चित्र उन्हीं की वाल से लिया गया है!
(शीशपाल गुसाईं का नाम उत्तराखंड के जाने माने वरिष्ठ पत्रकारों और लेखकों में शुमार है)