बोली-भाषा

गढ़वाली भाषा के उपभेद

bol pahadi
संकलन- नवीन नौटियाल //
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          उत्तराखण्ड के गढ़वाल मण्डल में बोली जाने वाली भाषा को गढ़वाली कहा जाता है। गढ़वाली के अंतर्गत कई उपभाषाएँ और बोलियाँ शामिल हैं। समस्त गढ़वाल में गढ़वाली भाषा व्यवहारिक रूप में बोली जाती है जिसका सामान्य एवं मुख्य रूप श्रीनगर और उसके आसपास प्रयुक्त की जाने वाली बोली को माना जाता है। ग्रियर्सन ने गढ़वाली को आठ बोलियों ( श्रीनगरिया, बधाणी, दस्योली, मांझ-कुमय्या, नागपुरिया, सलाणी, राठी एवं टिरियाली ) में विभाजित किया था। जबकि तत्पश्चात किए गए अध्ययनों एवं शोध-कार्यों में गढ़वाली की 15-20 बोलियाँ प्रकाश में आयी हैं। गढ़वाली भाषा के मुख्य उपभेद निम्नलिखित हैं-
1. श्रीनगरिया बोली – इस बोली को गढ़वाली बोली का परिनिष्ठित रूप माना जाता है। इसका प्रयोग चांदपुर परगने के दक्षिणी भाग में, देवलगढ़ परगने में और आसपास के क्षेत्र में होता है। श्रीनगरिया बोली उच्चारण में आ-कार बहुला है। जैसे – जाणा, खाणा, छया, छवा आदि।
क. राठाली/राठी – श्रीनगरिया बोली के अंतर्गत ही राठाली बोली भी आती है जो पौड़ी गढ़वाल के राठ क्षेत्र में बोली जाती है। इसमें भी आ-कार का प्रयोग मिलता है। जैसे- म्यारा, त्यारा आदि।
ख. चौंदकोटी – गढ़वाल के चौंदकोट परगने और उसके आसपास के क्षेत्र में किया जाता है।
2. मैल मुल्क्या – उत्तरी गढ़वाल में बोली जाने वाली गढ़वाली बोलियों को मैल मुल्क्या कहा जाता है। इसके अंतर्गत चार बोलियाँ शामिल है-
क. लोब्या – लोब्या बोली गढ़वाल के चांदपुर पट्टी एवं परगने की बोली है। इसका प्रयोग राठ क्षेत्र में भी होता है।
ख. बधाणी – यह बोली गढ़वाल के बधाण परगने की बोली है जो श्रीनगरिया बोली एवं राठी बोली से प्रभावित दिखाई देती है।
ग. दस्योला – यह बोली गढ़वाल के दसोली और पैनखंडा परगने में बोली जाती है।
घ. नागपुरया – इस बोली का प्रयोग गढ़वाल के नागपुर क्षेत्र और पैनखंडा परगने में किया जाता है। यह बोली दस्योला और मांझ कुमय्या से मिलती जुलती है।
3. मांझ कुमय्या – यह बोली कुमाऊँ और गढ़वाल के सीमान्त प्रदेश में बोली जाती है। इस बोली पर गढ़वाली और कुमाऊँनी का प्रभाव सामान रूप से देखा जा सकता है। गढ़वाल का बधाण परगना और गढ़वाल-कुमाऊँ के बीच का दुसांध क्षेत्र इस बोली का प्रभाव क्षेत्र माना जाता है।
4. सलाणी – सलाणी बोली गढ़वाल के सालान क्षेत्र की प्रमुख बोली है जिसमें मल्ला, तल्ला, पाली पट्टी, गंगा सलाण क्षेत्र के अलावा देहरादून, सहारनपुर, बिजनूर और मुरादाबाद के भी कुछ इलाके शामिल रहे हैं।
5. टिहरियाली – गढ़वाल के टिहरी गढ़वाल जिले में प्रयुक्त होने वाली बोली को टिहरियाली अथवा ‘गंगपरया’ बोली कहा जाता है। डॉ. गोविन्द चातक ने टिहरियाली के पुनः छ उपभेद किये हैं – टकनौरी, बड़ाहटी, रमोल्या, जौनपुरी, रंवाल्टी, बडियारगढ़ी तथा टिहरियाली।
क. जौनपुरी – गढ़वाली की यह उपबोली टिहरी जिले के जौनपुर विकासखंड में बोली जाती है। इसमें दसजुला, पालीगाड़, सिलवाड़, इडवालस्यूं, लालूर, छःजुला, सकलाना पट्टियां आती हैं। यह जनजातीय क्षेत्र रहा है।
ख. रंवाल्टी – गढ़वाल के उत्तरकाशी जिले के पश्चिमी क्षेत्र को रवांई कहा जाता है। यमुना और टौंस नदियों की घाटियों तक फैला यह क्षेत्र गढ़वाल के 52 गढ़ों में से एक (राईगढ़) है। इसी से इसका नाम भी रवांई पड़ा। इस क्षेत्र की बोली को रवांल्टी कहा जाता है। टिहरियाली की अन्य उप-बोलियों के बारे में जानकारी उपलब्ध नहीं हो पायी है।
6. बंगाणी – तिब्बत की सीमा से जुड़ी भोटिया तथा उत्तरकाशी के उत्तर-पश्चिमी भाग में हिमाचल प्रदेश से सटे क्षेत्र में बोली जाने वाली बोली को बंगाणी कहा जाता है। उत्तरकाशी जिले के मोरी तहसील के अंतर्गत पड़ने वाले क्षेत्र को बंगाण कहा जाता है। इस क्षेत्र में तीन पट्टियां मासमोर, पिंगल तथा कोठीगाड़ आती हैं जिनमें बंगाणी बोली जाती है। यूनेस्को ने इसे उन भाषाओं में शामिल किया है जिन पर सबसे अधिक खतरा मंडरा रहा  है।
7. जौनसारी – गढ़वाल मंडल के देहरादून जिले के पश्चिमी पर्वतीय क्षेत्र को जौनसार बावर कहा जाता है। यहाँ की मुख्य भाषा है जौनसारी। सुरम्य जौनसार बावर का भू-भाग जमुना और टौंस नदी के बीच स्थित है। यह भाषा मुख्य रूप से तीन तहसीलों चकराता, कालसी और त्यूनी में बोली जाती है। इस क्षेत्र की सीमाएं टिहरी और उत्तरकाशी से लगी हुई हैं और इसलिए इन जिलों के कुछ हिस्सों में भी जौनसारी बोली जाती है। जौनसारी की भी कई उप-बोलियाँ मानी गई हैं, जैसे- ‘बावरी’ और ‘कंडवाणी’ आदि। जो कि वर्तमान में अधिक लोकप्रिय नहीं रह गई है।
8. मारछा-तोल्छा – गढ़वाल के उत्तरी सीमान्त क्षेत्र के कुछ इलाकों में गढ़वाल मंडल के चमोली जिले की नीति और माणा घाटियों में रहने वाली भोटिया जनजाति मार्च्छा और तोल्छा भाषा बोलती है। इस भाषा में तिब्बती के कई शब्द मिलते हैं। नीति घाटी में नीति, गमसाली और बाम्पा शामिल हैं जबकि माणा घाटी में माणा, इन्द्रधारा, गजकोटी, ज्याबगड़, बेनाकुली और पिनोला आते हैं।
9. बुक्साणी – कुमाऊं से लेकर गढ़वाल तक तराई की पट्टी में निवास करने वाली जनजाति की भाषा है बुक्साणी। इन क्षेत्रों में मुख्य रूप से काशीपुर, बाजपुर, गदरपुर, रामनगर, डोईवाला, सहसपुर, बहादराबाद, दुगड्डा, कोटद्वार आदि शामिल हैं।
सन्दर्भ:-
1. गढ़वाल और गढ़वाल, संपा. – चन्द्रपाल सिंह रावत
2. घसेरी(ऑनलाइन पत्रिका), संपा – धर्मेन्द्र पंत
3. गढ़वाली भाषा के अनालोचित पक्ष – डॉ. अचलानंद जखमोला
4. गढ़वाली भाषा और उसका लोक-साहित्य- डॉ. जनार्दन काला
5. गढ़वाली लोकभाषाएँ : गढ़वाली/कुमाऊँनी/जौनसारी – डॉ. अचलानंद जखमोला

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